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जगमग-जगमग दीप जल रहे
चौतरफा खुशहाली हैं
मन का कोना खाली हैं
ये कैसी दिवाली हैं ???
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दृश्य - ०१
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कल अयोध्या नगरी में दीपोत्सव मनाया गया संपूर्ण
अयोध्याजी को उसी तरह सजाने का प्रयास किया गया जैसा कभी त्रेतायुग में मर्यादा
पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के चौदह वर्षों के लंबे वनवास के बाद पुनरागमन पर
दीपमालाओं से सुसज्जित किया होगा ठीक उसी तरह पुष्पक विमान से राम, लक्ष्मण और
सीताजी उस पावन भूमि पर उतरे और उस दृश्य को सजीव करने के हरसंभव प्रयास ने हमें
ये यकीन दिलाने में कोई कसर न छोड़ी कि कुछ इस तरह ही सरयू नदी के किनारे अयोध्यावासियों
ने आरती उतारकर उन सबका स्वागत-सत्कार किया होगा... तो हम सबने इस झलकी के माध्यम
से रामचरितमानस में वर्णित उन पलों को न केवल साक्षात् साकार देखा बल्कि मन भी
प्रफ्फुलित हुआ कि आज भी हम सबके हृदय में उनकी वो छवि उसी प्रकार अंकित हैं जिसे
देखने को हम लालयित रहते तो उस कल्पना को इस तरह से हक़ीकत बनते देखना वाकई दर्शनीय
ही नहीं यादगार दिन था ।
दृश्य – ०२
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आज उसी जगह जहाँ कल 1.5 लाख दीयों से अयोध्या को
प्रकाशित कर विश्व रिकॉर्ड बनाने की तैयारी की गयी थी और सभी दीयों में तेल भरकर
प्रज्वलित किया गया था जिसकी रौशनी ने दीपावली से पूर्व ही दीपावली का अहसास पैदा
किया था उन्हीं दीयों की बाती बुझ जाने के बाद जो तेल शेष रह गया वो यूँ तो बहुत
कम था लेकिन दीपक की अधिक मात्रा ने उसमें में वृद्धि कर दी तो वे लोग जिनके पास न
तो दीये या तेल ही खरीदने के पैसे और न ही इस तरह से दिवाली मनाना ही उनके लिये
संभव तो उन्होंने इन दीपकों से बचे तेल को एकत्रित करना शुरू कर दिया जिसका उपयोग
वे केवल दीये जलाने में ही नहीं करने वाले बल्कि उनका तो खाना भी उससे बनने की
उम्मीद उनके मन में जगी जिसने उन्हें ऐसा करने को मजबूर कर दिया और इस तरह के
चित्र फेसबुक पर नजर आये तो देखकर मन द्रवित हो गया और मन में ये ख्याल आया कि
जितनी रकम इस आयोजन में खर्च की गयी यदि उसे सही तरीके से इस्तेमाल किया गया होता और
उससे तोहफे खरीदकर या भंडारा आयोजित किया जाता तो ‘सच्ची दीवाली’ होती और हम इन दर्दनाक
तस्वीरों की जगह मुस्कुराते चेहरों पर खिली ख़ुशी की चमकती चमक से रोशन वास्तविक
दीयों को देख सकते थे पर, आज का सच यही हैं जो कल एक भ्रम था ।
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उफ़, ये कैसा मंजर हैं एक वो भी दिवाली थी एक ये
भी दीवाली हैं... ऐसे में मन में यही ख्याल आ रहा कि हम दीपावली में जितना खर्च
करते उसका एक हिस्सा भी यदि ऐसे जरुरतमंदों को दे दे तो न सिर्फ उनका त्यौहार
मनेगा बल्कि हमें उनका आशीष भी मिलेगा जो पटाखों या बेकार की चीजों में जाया करने
से अधिक बेहतर निवेश होगा... जिसका भुगतान हमें भविष्य में किसी न किसी रूप में
अपने निश्चित ही मिलेगा और न भी मिले तो उनकी ख़ुशी के रूप में तुरंत मिल जायेगा तो
कभी यूँ ज्योति पर्व मनाकर देखें... इसी उम्मीद के साथ सबको दीवापली की अनंत
शुभकामनायें... जय श्रीराम... :) :) :) !!!
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© ® सुश्री
इंदु सिंह “इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
१९ अक्टूबर २०१७
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