सोमवार, 10 दिसंबर 2018

सुर-२०१८-३१० : #विश्व_मानव_अधिकार_दिवस_का_फ़रमान #संविधान_भी_यही_कहता_सब_एक_समान




ईश्वर ने जब ये सृष्टि बनाई तो उसने किसी मानव में कोई भेदभाव न किया न तो किसी को अमीर, न ही गरीब या उंच-नीच बनाया यहाँ तक कि जात-पात भी उन्होंने नहीं बनाये वो सब इन्सान ने बनाये वो भी इस कदर उलझे हुये कि आज तक उनकी वजह से तमाम कोशिशों के बावजूद भी समानता स्थापित नहीं हो पा रही क्योंकि, जब मानव ही कोई नहीं तो फिर उनमें बराबरी किस तरह से हो सकती है

परमपिता ने तो कुदरत की सब नेमतें सबको एक समान बांटी लेकिन, जब उस पर इन्सानों का कब्जा हुआ तो उसने उसे भी आदमी की हैसियत के अनुसार प्रदान किया वो तो उसका सूरज, चाँद, सितारों और आसमान, हवा पर वश नहीं चलता नहीं तो सूरज की रौशनी, चाँद की चांदनी, और बारिश भी सबके हिस्से में नहीं आती ऐसे में यही समझ में आता कि यदि हम उस रब की सन्तान के रूप में ही रहते तो जो भेदभाव झगड़े की वजह बना उत्पन्न ही नहीं होता

ऐसे में यही समझ में आता कि आज जिस तरह की असमानता या असंतोष समाज में व्याप्त या दिखाई देता वो हम सब इन्सानों की ही वजह से है जो कि सब कुछ जानते-समझते हुये भी पिछड़े हुये लोगों को उनका हक नहीं देता जिसके कारण वे सभी मानव अधिकार से वंचित है वो भी तब जबकि, संविधान में समानता सबके लिये दर्ज तो ऐसे में मानवाधिकार दिवस मनाना औचित्यहीन है        

हमने ईश्वरीय विधि-विधान में हस्तक्षेप कर अपना अलग मानवीय संविधान बनाया पर, उसे भी उस तरह से नहीं निभाया जिसने लोगों के बीच एक गहरी खाई बना दी इसका यही समाधान कि सबको इंसानियत के आधार पर पहचाना जाये तब ये सार्थक होगा... ☺ ☺ ☺ !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
१० दिसम्बर २०१८

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