घड़ी की तीनों
सुइयां होती अलग-अलग नाप की और अलग-अलग नाम की पर, इन तीनों के बीच आपसी तालमेल से
ही समय आगे बढ़ता जो पल-पल बदलता रहता और हमको कुछ कहता जिसे हम अनसुना कर देते...
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कुछ कहती
टिक-टिक करती
घड़ी की सुईयां
सुनो जरा गौर इसको
पल-पल बीत रहा
हर पल निरंतर
गर, समय हो कम तो
न रुकना क्षण
भर को भी
बोले ‘सेकंड’
की सुई
थाम के हाथ इन
पलों का
पा सकते एक
घड़ी
जो देती जीने
को
छोटे-छोटे
लम्हों की कड़ी
ये कहती ‘मिनट’
की सुई बड़ी
और जो कर ली
कदर
एक-एक पल की तो
जरा-सा थमकर
इत्मिनान से
फ़िर बढ सकते आगे
पा सकते मंज़िल कोई
भी
देती ये बडा
संदेश
सबसे छोटी ‘घंटे’
की सुई ||
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आज की रात भी
ये अपने साथ इक्कीसवी सदी को कुछ और बड़ा कर देगा साथ ही हमारी उम्र व अनुभव में
थोड़ा इजाफ़ा कर देगा जिसे हम रोक तो नहीं सकते लेकिन, इनके साथ कदम मिलाकर चलते
हुये अपनी मंजिल को जरुर पा सकते है तो यही करना है ।
यही संकल्प लेना
है कि अपने तयशुदा लक्ष्य को पा सके... ☺ ☺ ☺ !!!
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© ® सुश्री इंदु
सिंह “इन्दुश्री’
नरसिंहपुर
(म.प्र.)
३१ दिसम्बर २०१८
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