मंगलवार, 11 दिसंबर 2018

सुर-२०१८-३११ : #दिलीप_कुमार_से_पूर्व #दिलीप_कुमार_के_पश्चात




हिन्दी सिनेमा का जन्म 1913 को मूक फ़िल्म 'राजा हरिश्चन्द्र' के साथ हो गया जिसके बाद उसमें विकास की सतत प्रक्रिया चलती रही और इस दरम्यान अनेकों फिल्में बनी व अनगिनत प्रयोग इस विधा में होते ही रहे । इसके साथ ही कई अभिनेताओं व अभिनेत्रियों के अपने काम से इसे नये आयाम देने और अपने अलहदा अभिनय से दर्शकों को अपना बनाने के प्रयास भी समानांतर चलते ही रहे । जिसके फलस्वरूप हम देखते है कि जहां शुरुआती दौर में अभिनय कुछ बनावटी और अति नाटकीयता से भरा दिखाई देता है वहीं बाद में उसमें चमत्कारिक रूप से स्वाभविकता की झलक दिखाई देती है ।

इसका पूरा श्रेय जिस अजीमों शान अभिनय के शहंशाह ‘यूसुफ खान’ उर्फ ‘दिलीप कुमार’ को दिया जाता है उन्होंने अपनी अदाकारी से अभिनय की नूतन परिभाषा ही नहीं फिल्मी एक्टिंग का ककहरा भी लिखा जिसे पढ़कर आने वाले कलाकारों ने उसको हूबहू अपनाने की कोशिशें की ताकि उनके समकक्ष न सही उनके आस-पास तो वे नजर आ ही सके जिसमें-से कुछ कामयाब भी हुये और उन्होंने अपनी सफलता का श्रेय अपने आदर्श फनकार को पूर्ण कृतज्ञता के साथ दिया भी जिनकी फेहरिश्त काफी लंबी है और ये वही है जिन्होंने उनकी फिल्में देखकर न केवल फिल्मों में आने का निर्णय लिया बल्कि, उनकी तरह नाम कमाने व अभिनय की दुनिया में अपने झंडे गाड़ने का भी निश्चय किया तो ऐसे में दिलीप साहब उनके लिए महज़ एक एक्टर नहीं अभिनय का जीता-जागता संस्थान थे ।

इस आधार पर ये समझना मुश्किल नहीं कि ‘दिलीप कुमार’ अपनी अदाकारी से एक ऐसे मानक में परिवर्तित हो गये जिनके पूर्व व पश्चात के सिनेमा पर दृष्टि डाले तो एकदम स्पष्ट समझ में आता कि, उन्होंने हिन्दी सिनेमा को जो योगदान दिया वो अमूल्य है क्योंकि, उन्होंने इससे पहले की नाटकीय अदाकारी को अपनी स्वाभाविक अदायगी से इस तरह परिवर्तित किया कि देखने वाले उनके दीवाने हो गये और उनकी रजत पर्दे पर उनकी उपस्थिति केवल फ़िल्म के हिट होने ही नहीं पुरस्कार की भी गारंटी बन गयी क्योंकि, सर्वश्रेष्ठ अभिनय के ज्यादातर सम्मान उनके ही नाम लिखे हुए है ।

अपनी आंतरिक संवेदनशीलता को वो फिल्मी किरदार के जरिये इस तरह से पर्दे पर प्रदर्शित करते कि वो कोई कल्पना नहीं हकीकत ही नजर आता था यही वजह कि उनके निभाये ज्यादातर पात्र अपने नाम से पहचाने जाते न कि उनके नाम से उन्हें याद किया जाता । यही तो एक असाधारण कलाकार की विशेषता कि वो जो भी करता उसमें एक मिसाल कायम कर देता जो उसके न रहने पर भी उस फील्ड में आगे आने वाले लोगों को दी जाती कि इस तरह से उसे अपने आपको भी स्थापित करना है । उनके द्वारा अभिनीत अधिकांश चरित्र भावुकता भरे हुए थे जिसने उनको त्रासदी का महारथी घोषित कर दिया और डूबकर अभिनय करने की उनकी ये आदत उनको अवसाद की तरफ ले गयी तो फिर उन्होंने हास्य भूमिकाओं से अपने नये रंग को प्रस्तुत किया व खुद का इलाज भी किया

आज मगर, हम सबको इतनी यादगार फ़िल्में व इतने यादगार चरित्र देने वाले वो अभिनय सम्राट यादों के जिन गलियारे में खो गए वहां से उनको निकालना संभव नहीं क्योंकि वे तो खुद को भी भूल गये इसमें गनीमत कि बात केवल इतनी कि इसके बावजूद भी वे हम सबके बीच सशरीर मौजूद है । आज हम सब उनका 96वां जन्मदिन मना रहे जिसका अहसास तक उनको नहीं शायद, ऐसे में ये ख्याल आता कि अभिनय की जिस पाठशाला ने हजारों को अभिनेता बनाया जिनका प्रेरणास्त्रोत आज खुद उसे किसी ऐसी रोशनी की जरूरत जो उनको इस बेमानी ज़िन्दगी व दुनिया में फिर से जीने का कोई मकसद दे दे अन्यथा हम उनको इस तरह मजबूर देखते रहेंगे ।

आज इस अवसर पर खुदा से यही दुआ कि उन्हें स्वास्थ्यपूर्ण लम्बी खुशहाल ज़िन्दगी अता करें... ☺ ☺ ☺ !!!
_____________________________________________________
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
११ दिसम्बर २०१८

कोई टिप्पणी नहीं: