सोमवार, 24 दिसंबर 2018

सुर-२०१८-३५५ : #हर_कोई_बन_सकता #किसी_दूसरे_के_लिये_सांता




न रहे कोई ग़म
न रहे कोई उदास
सबको मिले खुशियाँ
सब मना सके मिलकर
क्रिसमस का त्यौहार
इसलिये रात में आते सांता
बांटने सबको उपहार
देने हर हाथ में कोई सौगात
पाकर जिसे मुस्कुरा उठे
रोते हुये लब सभी
हर दिल में बजने लगे
जिंगल बेल का मधुर गीत
थिरक उठे सबके कदम
न रहे उनके बीच भेद कोई
न हो कोई अमीर
न ही रहे कोई गरीब
मिट जाये ऊंच-नीच की खाई
चढ़ गये जिसके लिये
प्रभु पुत्र ईसा मसीह सलीब
सबको हासिल हो
उसके हिस्से का प्यार
दे सकते हम भी
किसी को मुंहमांगी मुराद
कर सकते पूरे
किसी के अधूरे ख्वाब
पोंछ सकते है
किसी के बहते आंसू
लगा सकते है
जख्मों पर मरहम
बन सकते हम सब भी
दूसरों के लिये सांता
हम भी तो दूर कर सकते
किसी का कोई अभाव
देखें तो मिल जायेगा भीतर
छिपा हुआ वो संत
जो सबकी तो नहीं मगर,
चाहे तो कर सकता
किसी की कहानी का सुखांत   
फैलाकर प्रेम उजियारा
लेकर हाथों में हाथ
स्नेहिल स्पर्श से अपने
कर सकता है
नकारात्मकता के घनघोर
अँधेरे का अंत   
तो आओ चले वहां
कर रहा कोई इंतजार जहां  
ना-मुमकिन नहीं
इतना तो है सबके पास  
कि बन सकता
किसी के लिये कोई भी
इक दिन का ‘सांता’
☺ ☺ ☺ !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२४ दिसम्बर २०१८

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