सोमवार, 3 दिसंबर 2018

सुर-२०१८-३०३ : #अ_सामान्य_होना_बुरा #अ_साधारण_होना_अच्छा_होता



शब्दों का सही प्रयोग ही उसके अर्थ को सही तरीके से प्रेषित करता है और यही वजह कि ‘विकलांग’ के लिये अब ‘दिव्यांग’ शब्द प्रयुक्त किया जाने लगा जो दर्शाता कि ‘विकलांगता’ जहाँ शरीर की किसी विकृति विशेष को इंगित करता वहीँ ‘दिव्यांग’ शब्द व्यक्ति में किसी दिव्य शक्ति के होने का अहसास कराता है

इस तरह वह व्यक्ति स्वतः ही विशिष्ट बन जाता जिसके साथ ये शब्द जुड़ जाता क्योंकि, अब तक तो किसी के भीतर या बाहर किसी भी तरह की कमी के पाये जाने पर उसको झट ‘अ-सामान्य’ कहकर पल्ला झाड़ लिया जाता था जैसे कि ‘सामान्य’ होने से सब कुछ सहज-सरल हो जाता जबकि, संघर्ष तो सबके जीवन में होता चाहे वो सम्पूर्ण हो या उसमें कहीं कोई कमी हो

फिर भी अंतर ये हो जाता कि जहाँ सामान्य व्यक्ति ये सोचकर निश्चिन्त हो जाता कि उसे तो ईश्वर की कृपा से सब हासिल तो आगे भी इसी तरह उसे सब कुछ बड़ी आसानी से मिल जायेगा दूसरी तरफ जो अभाव के साथ जन्मे वे बड़ी जल्दी ये जान लेते कि वे सबसे अलग तो उनका संघर्ष भी अलग होगा और यही सोच उनकी ताकत बन जाती जो उन्हें असामान्य से असाधारण बना देती है

यही फर्क शब्दों को भी अलग मायने देता और उसे अपनाने वालों को भी अमूमन हम यही सुनते कि फलाना ‘एब्नार्मल’ है जो उसके सामान्य न होने को दर्शाता गोया कि सामान्य होना बहुत बड़ी बात जो अक्सर, सुनने वाले के मन में हीन भावना भर देती पर, यदि उसे ये अहसास हो जाये कि वो सबसे अलग इस मायने में नहीं कि उसमें कोई कमी बल्कि, इसलिये कि सामने वाला सम्पूर्ण होकर भी दूसरे की अपूर्णता पर टीका-टिप्पणी कर रहा जबकि, वो अपनी आंतरिक शक्ति के बल पर अपनी दैहिक-मानसिक रिक्तता को भरने में लगा हुआ है

अपनी ऐसी प्रबल सकारात्मक सोच के दम पर ही न जाने कितने दिव्यांगों ने ऐसे अद्भुत कारनामे कर दिखाये जो बहुत-से सामान्य लोग भी नहीं कर पाए और ये साबित कर दिया कि ये महज एक नजरिया अन्यथा अपनी किस्मत केवल हाथ या पैरों से नहीं कर्मों से ही लिखी जाती और वो तो हर हाल में संभव है केवल उनके लिये ही नहीं जो कुछ करने की बजाय सोचते ही रहते है

आज ‘अन्तर्राष्ट्रीय दिव्यांगजन दिवस’ पर यही शुभकामना कि सभी दिव्यांग अपनी दिव्यता से सफलता की हर ऊँचाई को छुये और जहाँ उनको मदद की आवश्यकता हो हम उनके साथ खड़े होकर उनमें कमतरी नहीं बहादुरी का जज्बा पैदा करें यही इस दिवस पर सबसे अनुरोध है हमें उनके भीतर ‘असामान्य’ नहीं ‘असाधारण’ होने का भाव जगाना है... यही इस दिवस की सार्थकता भी तो है... है न... ☺ ☺ ☺ !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
०३ दिसम्बर २०१८

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