गुरुवार, 13 दिसंबर 2018

सुर-२०१८-३४३ : #कला_फिल्मों_का_हासिल #भावप्रणव_अभिनेत्री_स्मिता_पाटिल




महज़ दस साल का फ़िल्मी कैरियर और मात्र ३१ साल की कम उम्र में दुनिया को अलविदा कहना तब बेहद महत्वपूर्ण हो जाता है जबकि, वो उल्लेखनीय हो तो उसकी टीस आजीवन रहती और उस शख्सियत को भूल पाना नामुमकिन होता क्योंकि, वो अपनी किसी अद्भुत प्रतिभा से लोगों के दिलों पर इस तरह अपनी अमिट छाप बना लेता कि उसके जाने के बाद भी वो उसी तरह कायम रहती है

कुछ ऐसी ही गहरी स्मृति सर्वप्रिय संवेदनशील अदाकारा ‘स्मिता पाटिल’ की है जिन्होंने अपने भारतीय सौन्दर्य ही नहीं अपनी बड़ी-बड़ी बोलती आँखों व उस पर अपने भावप्रणव अभिनय से दर्शकों को इस तरह अपना दीवाना बनाया कि उनकी हर फिल्म के साथ वो दीवानापन बढ़ता ही गया जिसमें उनके अभिनीत पात्र भी ऐसे जो आम व्यक्ति के जैसे जिसमें वो अपना ही अक्स देखता और उसकी छवि अपने अंतर में बसा लेता ।

‘स्मिता पाटिल’ के आगमन के बाद हिन्दी सिनेमा में फिल्मों का एक नया दौर भी प्रारम्भ हुआ जिसे ‘कला फिल्मों’ के नाम से जाना गया और उन फिल्मों में कृत्रिम नहीं स्वाभाविक अदाकारी की दरकार होती थी जिसमें वे इस तरह माहिर थी कि जब भी किसी चरित्र को निभाती तो उसे रजत प्रदर पर इस तरह से प्रस्तुत करती कि फिर वो ‘स्मिता’ नहीं बल्कि, हूबहू वो काल्पनिक किरदार बन जाती थी ।

बहुत-ही कम उम्र से ही उन्होंने अपने भीतर छिपी आग को पहचान लिया था शायद, तभी तो एक बार जब कदम घर से बाहर निकाले तो फिर हर पड़ाव को पार करते हुये अनायास ही उस मंजिल तक पहुँच गयी जिस तक जाना उनकी किस्मत में लिखा था ऐसे में एक के बाद एक ऐसी कहानियां व फिल्में उनके हिस्से में आई जो उनकी उम्र व अनुभव से बढ़कर थी लेकिन, अपनी अदाकारी से उन्होंने उसे जीवंत कर दिया

आज ही के दिन वो सबकी आँखों में आंसू छोड़कर इस दुनिया को अलविदा कहकर चली गयी और उनकी इस आकस्मिक मौत से हतप्रभ सभी भौचक रह गये जिस पर वे आज भी विश्वास नहीं कर पाते कि इतनी छोटी उम्र में वो इस तरह विदा हो गयी और जब-जब १३ दिसम्बर की तिथि आती वो दुखदायी घड़ी भी साथ लाती जिसके पार्श्व में छिपी स्मिता की स्मृतियाँ भी झिलमिलाने लगती जो अब उसकी साथी है  

_____________________________________________________
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
१३ दिसम्बर २०१८

कोई टिप्पणी नहीं: