गुरुवार, 20 दिसंबर 2018

सुर-२०१८-३५० : #नलिनी_जयवंत_की_अदाकारी #मासूम_चेहरे_पर_रब_की_कलाकारी




20 दिसम्बर 2010 का दिन जब अपनी अदाकारी से अपने चाहने वालों का मनोरंजन करने वाली और हिंदी सिनेमा के इतिहास में अपना एक अलग अध्याय दर्ज करने वाली मासूम अदाकारा #नलिनी_जयवंत हम सबको छोड़कर चली गयी और ये जाना इतनी खामोशी से हुआ कि उनके प्रशंसकों को तो छोड़ो अगल-बगल वालों तक को खबर नहीं हुई कि जिस धमक से उनकी फिल्मी नगरी में आमद हुई थी उतनी ही चुपचाप वो विदा हो गयी वो भी तब जबकि, उनकी नातिन काजोल जैसी अभिनेत्री सिनेमा के रजत पर्दे पर अपने अभिनय से उसी तरह शोहरत की बुलंदियां हासिल कर रही थी जिस तरह कभी उन्होंने अपने संवेदनशील अभिनय से ट्रेजेडी किंग दिलीप कुमार तक को अपना दीवाना बना लिया था

फ़िल्मी कलाकारों के जीवन का ये एक कड़वा सत्य है कि लोगों में उनकी दिलचस्पी केवल तब तक जब तक वे अपने ग्लैमर से उनको आकर्षित करते रहते और जैसे ही इसमें जरा-सी भी कमी आई और उसकी जगह दूसरे ने ली ऐसे में लाइम लाइट से हटकर एकाकी जीवन से सामना होते ही अधिकतर अवसाद से ग्रस्त हो जाते या फिर गुमनामी में एक दिन इसी तरह से गुम हो जाते जैसे वे चली गयी और हमको खबर भी तीन दिन बाद हुई क्योंकि, उस फ्लैट में वो अकेली थी वो जिसने न जाने अपनी कितनी फिल्मों और अपने कितने किरदारों से दर्शकों का मन बहलाया पर, आखिरी समय में कोई काम न आया तन्हाई ही ने बस साथ निभाया उसे ही पता जो गुफ्तगू उसके साथ हुई हम तो केवल उतना ही जानते जो हमारे सामने आया

उसके आधार पर ही ये कह सकते कि जीवन कहना को क्षण भंगुर मगर, जो अकेला उसे काटता उसके लिए एक-एक क्षण बरस के समान व्यतीत होता जिसका अहसास तक सब नहीं कर सकते पर, इन फ़िल्मी कलाकारों की ये भी खासियत कि वे न रहने पर भी अपनी कहानियों व उनके चरित्रों के जरिये हमारे बीच जीवित रहते तो इसी तरह नलिनी भी उन पात्रों में सदैव बनी रहेगी जिन्हें देखकर हम उनको महसूस कर सकते है उनके चेहरे पर पल-पल बदलते भावों में उनको ढूंढने का प्रयास कर सकते है क्योंकि, कलाकार भले ही झूठा अभिनय करे मगर, उसके बीच भी कहीं न कहीं वो ध्वनित हो जाता है जिस तरह नलिनी अपने मादक सौंदर्य के बीच उतनी ही मासूम नजर आती है

उनकी आंखों की शोखियाँ उनके अंतर की बेचैनी को दर्शाती है जो जीवन से उनको मिली थी बावजूद इस कड़वाहट के उन्होंने सबको अपनी मुस्कान की मिठास ही बांटी जिसके पीछे दर्द का सागर हिलोरें लेता था जिसे हमने उनके किरदार का अंश समझा जबकि हर किरदार में वो भी शामिल थी अपने ही स्वरूप में यकीन न हो तो उनकी अभिनीत फिल्मों को बार-बार देखें उन्हें फिर से अपने करीब पायेंगे उनको समझने का सिलसिला जो शुरू हुआ तो यही कहेंगे कि, हम बेखुदी में तुमको पुकारे चले गये... जीवन के सफर में राही मिलते है बिछड़ जाने को और दे जाते है यादें तन्हाई में तड़फाने को...!!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२० दिसम्बर २०१८

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