गुरुवार, 6 दिसंबर 2018

सुर-२०१८-३०७ : #मकड़जाल



इक,
'मकड़जाल'
ही तो है
ये ज़िंदगी
आप अपने को ही
लीलती रहती है
ये ज़िंदगी...
.....
रोज बुनती है
कुछ नया
रोज मिटाती है
कुछ पुराना
रोज ही कुछ इस तरह
बनती-बिगड़ती है
ये ज़िंदगी...
....
और,
एक दिन
उलझकर अपने ही
बुने जाल में  
फंसकर अपनी ही
बिछाई हुई बिसात में
खत्म हो जाती है
ये ज़िंदगी...
.....
सच,
एक मकड़जाल ही तो है
ये ज़िंदगी ।।
..........

#ज़िंदगी_बनाम_मकड़ी

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
०६ दिसम्बर २०१८

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