दुनिया में
दोस्ती एक ऐसा जज्बा और रिश्ता है जो नितान्त अजनबियों को अपनेपन की ऐसी डोर से
बांध देता कि जितनी नजदीकी या गुफ्तगू कभी आपसी संबंधों में नहीं होती उससे कहीं
अधिक इन बेगानों के इस खुद से बनाये नाते में होती जो यदि पक्का हो तो समय के साथ
और मजबूत होता जाता कभी तो इतना अधिक बढ़ जाता कि दो जिस्म, एक जान की मिसाल बन जाता तो कभी मैं काया, तू साया की तरह एक दूजे की अहमियत को दर्शाता है ।
कुछ ऐसा ही
करीबी व रूहानी रिश्ता बन गया था सपनों के सौदागर हिन्दी सिनेमा के सबसे बड़े
शो-मेन और एक असाधारण प्रतिभाशाली गीतकार शैलेन्द्र के बीच जिनकी दोस्ती भी यूं ही
अचानक ही गयी थी पर, जब एक बार
दोनों ने एक-दूसरे को अपना जिगरी यार मान लिया तो फिर ताउम्र ये दोस्ताना बना रहा
।
यूं तो अपनी
पहली मुलाकात में शैलेन्द्र ने राज कपूर जी द्वारा उनके लिए गाने लिखने के ऑफर को
ठुकरा दिया था मगर, तकदीर में उनका
मिलना लिखा तो परिस्थितियां कुछ ऐसी बनी कि वो खुद चलकर उनके पास आये और उनकी
ब्लॉक बस्टर मूवी बरसात के लिए शीर्षक गीत व पतली कमर है जैसे गाने लिखकर उनके
दोस्तों की फेहरिश्त में शामिल हुए तो फिर अंतिम सांस तक ये रिश्ता बना ही रहा जो
संयोग कहे या दुर्योग कि राज कपूर के जन्मदिन 14 दिसम्बर से ऐसा जुड़ा कि दोनों की दोस्ती को सदा-सदा के लिये अमर कर
गया और जब-जब ये तारीख आती इन दोनों नामों को एक साथ ले आती जहां राज कपूर के लबों
पर आने वाले तराने हम गुनगुनाते या देखते तो दोनों के दीदार हो जाते एक के होंठ पर
दूजे के लिखे शब्द इस तरह अर्थ पाते कि देखने वाले लाज़वाब हो जाते और इस जादुई
अहसास को हम उनके हर गीत में महसूस कर सकते है ।
राज कपूर जब आज
के दिन अपने जन्मदिन की खुशियां मनाने में व्यस्त थे तो उन्हें खबर नहीं थी कि आज
उन्हें ऐसी मनहूस खबर भी मिलने वाली है जो उनके गीतों के साथी को उनसे सदा-सदा के
लिए विलग कर देगी पर, अनहोनी को कौन
रोक सकता है तो वही हुआ जो होना था उधर उनका दम निकला इधर राजा जी सदमे में आ गये
कि ये क्या हुआ जो सोचा न था न ही गुमान था कि उनकी टीम से एक नायाब सितारा कम हो
जायेगा अपने दुख को अपनी पीड़ा को उन्होंने शब्दों में बयान करने के लिये Filmfare
मैगज़ीन में एक Open Letter लिखा था,
"मेरी आत्मा का
एक हिस्सा चल बसा ये ग़लत है । मेरे बागीचे के सबसे सुंदर गुलाब को मुझ से दूर कर
दिये जाने पर आज मैं रोता हूं । वो एक नेक़ दिल इंसान था अब वो चला गया और रह गई
हैं तो सिर्फ़ उसकी यादें है" ।
आज इन दो
दोस्तों के स्मृति दिवस पर उन दोनों के इस सृजन से उनको आदरांजलि व नमन...
रिश्ता दिल से
दिल के ऐतबार का
ज़िन्दा है हमीं
से नाम प्यार का
के मर के भी
किसी को याद आयेंगे
किसी के आँसुओं
में मुस्कुरायेंगे
कहेगा फूल हर
कली से बार बार
जीना इसी का
नाम है…
वाकई, जीना इसी का नाम है जो कर्मयोगी जैसा जीवन
उन्होंने जिया... वो हमारे लिये प्रेरणा और उनका सार्थक कर्म हमारी धरोहर है ।
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© ® सुश्री इंदु
सिंह “इन्दुश्री’
नरसिंहपुर
(म.प्र.)
१४ दिसम्बर २०१८
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