बुधवार, 19 दिसंबर 2018

सुर-२०१८-३४९ : #बलिदान_उनका_व्यर्थ_न_जाये #देश_को_हम_सब_सर्वश्रेष्ठ_बनाये




यूं तो लोग कहते पुरानी बातों को क्या याद करना, जो गुजर गया उसे क्यों बार-बार दोहराना और जो नहीं रहे उनकी याद में कब तक आंसू बहाना बेहतर कि आज में ही जीना पर, इसके बावज़ूद भी इतिहास में दर्ज कुछ घटनाएं और शख्सियत ऐसी है जिन्हें विस्मृत करना या जिनकी शहादत को विशेष दिवस पर भी नजर अंदाज कर देना वैसा ही है जैसे कि अपनी जड़ों से ही मुंह फेर लेना और ये समझना हम ही सब कुछ है

जिससे हमारा अस्तित्व कायम उसका जिक्र न करना संभव नहीं होता तो आज जब 19 दिसम्बर आई तो साथ ही #काकोरी_कांड के बलिदानी क्रांतिकारियों की याद भी आ गई जिन्होंने हमारे देश की आज़ादी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई वो भी उस वक़्त जबकि देश निराशा के गहरे अंधकार में घिरा हुआ था और आज़ादी का सपना आंखों में धुंधलाने लगा था क्योंकि, गांधीजी ने चौरा-चौरी हादसे के बाद असहयोग आन्दोलन वापस ले लिया था

ऐसे समय में लोगों को उस हताशा से निकालने का काम किया #रामप्रसाद_बिस्मिल , #अशफ़ाक़_उल्ला_खान और #ठाकुर_रोशन_सिंह ने जिन्हें उनकी इस हिमाकत पर ब्रिटिश सरकार द्वारा आज ही के दिन फांसी पर लटका दिया गया पर, उनकी कुर्बानी व्यर्थ नहीं गयी उसने अपने जैसे अनेक युवाओं को स्वतंत्रता प्राप्ति का मार्ग दिखा दिया जिस पर चलकर चन्द्रशेखर आज़ाद, भगत सिंह जैसे देशभक्तों ने अपने प्राण जरूर गंवा दिये पर, अंग्रेजों को ये जता दिया कि अब उनके दिन खत्म होने आये उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है

जो कहने को तो 15 अगस्त 1947 को समाप्त हुई पर, उस बीच कोई शान्त नहीं बैठा अपने वतन के प्रति कुछ कर गुजरने का जज्बा उसको फांसी के फंदे से डरा न सका न जाने कितने वीर अंग्रेजों की क्रूरता के शिकार हुये और कितनों का कोई पता नहीं चला ऐसे में हम जिनको जानते उनके प्रति अपनी श्रद्धांजलि अर्पित न करना कृतध्नता ही कहलायेगी क्योंकि, ये न होते अगर तो न जाने हम अभी आज़ाद फिर रहे होते या फिर गुलामी की जंजीरों से ही बंधे होते एक ऐसा सवाल जिसका जवाब निश्चित ही यही होगा कि ये थे इसलिए हम है तो फिर उनको याद न करना तो एकदम गलत है ।

आज उन अमर बलिदानियों को मन से नमन... जय हिन्द, जय भारत... वन्दे मातरम... ☺ ☺ ☺ !!!


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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
१९ दिसम्बर २०१८

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