सोमवार, 15 जुलाई 2019

सुर-२०१९-१९६ : #लड़की_को_भी_गलती_का_अधिकार #कोख_में_मारने_का_न_करें_अनर्गल_प्रलाप



एक लड़की अपने पसंद के लड़के से शादी करने के लिये अपने घर से भागती है तो जिसे देखो वही उसके व्यक्तिगत मसले पर अपनी राय देने लगता और ज्यादातर लोगों को उसका ये कदम गलत लगता क्योंकि, हमारे देश में ऐसी मान्यता कि लड़की को अपने जीवन का सबसे बड़ा फैसला अपने मन से करने का कोई हक़ नहीं उसके लिये क्या सही, क्या गलत ये उसकी जगह उसके पालक बेहतर तरीके से जानते है जो यदि पूर्णतया सत्य नहीं तो असत्य भी नही जिसका निर्धारण भविष्य करता जिसके बारे में कोई नहीं जानता यहाँ तक कि अक्सर, माता-पिता के किये गये निर्णय भी गलत निकलते कि वे भी तो अमूमन उन्हीं आधारों पर ये फैसला करते जो समाज ने निर्धारित किये है जिसके अंतर्गत जात-पात, धर्म-खानदान के साथ-साथ वर का सामाजिक ही नहीं आर्थिक स्टेट्स भी देखा जाता जबकि, लड़की के लिये ये सब कुछ कोई मायने नहीं रखता वो तो जिस पर दिल आ जाये उसे ही अपना जीवन साथी बनाने लालयित हो जाती है

यही वजह कि उसके भविष्य को लेकर उसके पालक चिंतित हो जाते जिन्हें लगता कि उनकी बिटिया अभी इतनी सयानी नहीं हुई जो हर पहलु पर विचार कर के ये तय कर सके और अपनी इस सोच पर उन्हें इतना गुमान होता कि वे ये भी नहीं सोच पाते कि यदि वे उसकी परवरिश भी बेटे की तरह करते या उसे इस बात के लिये तैयार करते कि जीवन में जब वो घड़ी आये तो जिसे भी उसने चुना उसके बारे में उनसे जरुर बात कर ले तो स्थिति सम्भल भी सकती है ये कोई सार्वभौमिक सत्य नहीं कि वो हमेशा गलत ही होगी या उसका चुनाव उनके परिवार के अनुकूल नहीं होगा माना ऐसा है भी तो उसे गुस्से से या दबाब डालकर समझाने की बजाय उसकी मानसिकता को अपने स्नेह से इस तरह परिवर्तित कर दें कि वो उसे भूलकर आपकी बात मान ले या फिर गुंजाईश हो तो आने अहंकार को छोडकर उसकी पसंद को स्वीकार कर ले हर हाल में यथासंभव ये प्रयास करें कि वो ऐसा कदम न उठाये जो उसे बागवत करने की मजबूर कर दे उसे अपने परिजनों से ही विलग कर दे ये सही है कि माता-पिता कभी अपने बच्चो का बुरा नहीं चाहते पर, जरूरी नहीं कि जिसे वो भला समझते हो बच्चों को भी वो अच्छा लगे ऐसे में मध्य मार्ग अपनाना ही उत्तम होता है

इसकी वजह ये है कि ये भी अनिश्चित कि आपका फैसला ही उपयुक्त है ऐसा भी तो देखा गया है जब माँ-बाप की इच्छा से शादी करने के बाद भी वर ने धोखा दे दिया तो ऐसे में बच्चे की बात मानकर देख लेना भी एक बेहतर विकल्प साबित हो सकता है ध्यान रखे कि यदि उसके जीवन में बुरा होना ही है तो न तो माता-पिता और न ही कोई दूसरा ही उसे रोक सकता है ऐसे में केवल इतना ही देखें कि जिसे वो चुन रही वो एकदम ही नाकारा तो नहीं यदि है भी तो तब भी उससे जबरदस्ती करने की जगह उसे किसी दूसरी जगह व्यस्त कर दे तब आप अपने मकसद में कामयाब हो सकते है ऐसे में मुझे नारी मन की कन्दराओं में छिपे रहस्यों को अपनी कलम से उजागर करने वाली संवेदनशील लेखिका ‘मालती जोशी’ की एक कहानी याद आ रही है जिसमें अपनी लाड़ली को किसी बेकार व्यक्ति की तरफ आकृष्ट पाकर उसके मम्मी-पापा बिना उसको अहसास दिलाये इस तरह से तवज्जो देते व बहलाते कि उसे पता तक न चलता कि वो कब उस अपरिपक्व प्रेम को भूल गयी तो इस तरह मनोवौज्ञानिक तरीके से भी अपने बच्चों का माइंड डायवर्ट किया जा सकता है

हाल-फिलहाल मे जिस तरह से साक्षी-अजितेश प्रकरण ने राष्ट्रीय मुद्दे का रूप धारण कर लिया उसके मद्देनजर कुछ भी कहना बेकार है क्योंकि, ये शुद्ध राजनैतिक व प्रायोजित मसला और यदि साक्षी के पिता विधायक न होते तो उनको कोई पूछता तक नहीं क्योंकि, ऐसे न जाने कितने जोड़े आये दिन विवाह करते तब न तो मीडिया और न ही पुलिस या किसी को भी कोई रूचि होती चूँकि एक तो ये राजनैतिक बन्दा दूसरे सबसे बड़े दल का सदस्य तो सबको लड़की का फैसला सही लग रहा है जबकि, हकीकत यही कि लड़की के नाम से उसके पिता का नाम व पद अलग कर दे तो उसका न तो कोई वजूद शेष रहेगा और न ही कोई पहचान ही बाकी रहेगी वो जो भी है अपने पिता की वजह से जिन्हें आज वो जलील कर रही और खुद को शोषित साबित करने एड़ी-चोटी का जोर लगा जिसका एकमात्र उद्देश्य लाइम लाईट में आना है । यहाँ ये लिखने का उद्देश्य मात्र इतना कि इस केस में सबसे ज्यादा ये पढ़ने व सुनने में आया आज तो एक मंत्री जी भी यही बयान दे दिये कि उसकी वजह से कन्या भ्रूण हत्या को बढ़ावा मिलेगा जो घोर आपत्तिजनक और यदि इस आधार पर ही बेटियां कोख में मारी जाती है तो फिर तो लड़कों को जन्म ही न लेना था क्योंकि, लडकियों के भागने का प्रतिशत उतना नहीं जितना कि लड़कों द्वारा बलात्कार जैसे जघन्य अपराध करना का है । फिर भी आज तक न तो किसी समाज सेवक और न ही किसी लेखक या माता-पिता को ये लिखते या कहते सुना कि इसने तो हमारी नाक कटवा दी अब हम पुत्र को जन्म नहीं देंगे या उन्हें कोख में ही मार देंगे फिर लडकियों के लिये ही ये विचारधारा क्यों ? लड़कियों के मामले में ही असमानता का व्यवहार क्यों ?? लड़के सारे घृणित कार्य कर के भी कुलदीपक और लड़की एक गलती करने के बाद ही कुलबोरनी ???

यदि इन सवालों के जवाब तलाशने की खातिर भी कभी-कभी लडकियाँ ऐसे कृत्य कर देती इसलिये भेदभाव को पूरी तरह समाप्त करें तो लडकियाँ स्वतः ही ऐसी हरकतें करना बंद कर देंगी वे बचपन से झेलती असमानता की खीझ व गुस्से को अक्सर, इस तरह से बाहर निकालती या खुद को कष्ट देकर अपने जन्मदाता से प्रतिशोध लेती जैसा कि ‘साक्षी’ के बयानों से भी साफ़ ज़ाहिर इसलिये ‘बेटी’ को ‘बेटा’ नहीं इंसान ही समझे उसे भी बेटे की तरह गलती करने का अधिकार दे यदि नहीं दे सकते तो बेटों के पांवों में भी उसी तरह पाबंदियों की जंजीर डालें जैसा उसके साथ करते है । देखियेगा, वो आपकी मर्जी के बिना कोई काम नहीं करेगी न ही बेटे के समान ही आपका दिल दुखायेगी वैसे भी बेटियों द्वारा विद्रोह करने के मामले कम ही सामने आते अमूमन उन्हें कुचल ही दिया जाता जबकि, बेटे तो ज्यादातर अपने उन्हीं पालकों को वृद्धाश्रम भेज देते जो बड़े नाजों व बेटी का हक मारकर उसे पालते तब वही बेटी सहारा बनती जिसे बुढ़ापे का सहारा तक नहीं माना गया और न ही इस तरह से उसका पालन-पोषण किया गया ऐसे में अगर, आप बेटों को श्राप नहीं देते या नहीं कोसते या उसे गर्भ में मारने की नहीं सोचते तब बेटी के मनमर्जी करने मात्र से ऐसे कुबोल कैसे बोल सकते है ।

बेटों की हजार गलतियों पर भी यदि आप उसकी वापिसी के लिये दरवाजे खुले रखते हो तो बेटियों के लिये भी एक दरीचा क्यों नहीं खुला छोड़ सकते ???                   
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© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
जुलाई १५, २०१९

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