बुधवार, 31 जुलाई 2019

सुर-२०१९-२१२ : #आम_आदमी_की_आवाज़_तीन #प्रेमचंद_मोहम्मद_रफी_और_उधम सिंह




अक्षर ज्ञान के साथ जब किताबों से पाला पड़ा तो उसके साथ ही हामिद, अलगू चौधरी, जुम्मन शेख, घीसू-माधव, धनिया, होरी, मुंशी वंशीधर, बूढी काकी जैसे कुछ बेहद सामान्य व दिल के करीबी लगते चरित्रों से परिचय हुआ और साथ ही जाना उनके रचयिता कथा सम्राट ‘प्रेमचंद’ के बारे में भी जिन्होंने समाज के आम आदमी की समस्याओं और उसके इर्द-गिर्द के माहौल में साँस लेते उन निचले तबके के लोगों पर भी अपनी कलम चलाई जो अक्सर, अछूते रह जाते और ऐसी चलाई कि उनके मनो-मस्तिष्क की गहन कन्दराओं में उमड़ने-घुमड़ने वाले विचारों को भी पन्नों पर भी उतनी ही ईमानदारी से उकेरा कि सामने नजर आने वाले दृश्यों के पीछे उन अदृश्य परतों के बीच चलने वाली उथल-पुथल को समझना मुमकिन हुआ साथ ही उनके दृढ़ चरित्र की नींव में जिन गहरे संस्कारों का योगदान उनको भी जान पाना आसान हुआ जो केन्द्रीय पात्रों की निर्णय क्षमता को मजबूती प्रदान करता जिसकी वजह से वे विषम हालातों में भी डिगे बिना जीवन मूल्यों का ह्रास नहीं होने देते और हर अत्याचार व अन्याय के खिलाफ़ खुलकर आवाज़ उठाते है

इसी तरह जब इतिहास में जाने का अवसर मिला तो ज्ञात हुआ कि जो कुछ भी आज हम देख रहे या जिस आज़ादी का उपभोग कर रहे वो एक दिन में या अचानक ही आधी रात में नहीं मिल गयी उसे पाने के लिये इस देश के अनगिनत वीर-वीरांगनाओं ने अपनी जान की बाजी लगा दी तब जाकर हम उन्मुक्त हवा में सांस ले सके तो इन्हीं ऐतिहासिक क्रांतिकारियों को पढ़ते हुये ये जाना कि इनके बीच अपने नाम के अनुरुप एक ऐसे जाबांज बहादुर ‘उधम सिंह’ की हैरतंगेज हकीकत का वर्णन भी है जिसने अपने देश की धरती नहीं बल्कि, विदेशी भूमि में जाकर अपने मासूम, बेकुसूर, असहाय देशवासियों के उस जघन्य हत्याकांड ‘जलियावाला’ का बदला लिया जिसे कि इतिहास का सबसे काला अध्याय माना जाता है तब आँख ही नम नहीं होती बल्कि, श्रद्धा से सर भी नत हो जाता है कि इस धरा ने ऐसे पराक्रमी सपूतों को जन्म दिया जो अपनी जान की परवाह न करते हुये भी अपने स्वाभिमान का प्रतिकार लेना जानते और दुश्मन के घर घुसकर बुलंद आवाज़ में दहाड़ते है

मन को सुकून पहुँचाने वाले साधनों में सबसे पहला क्रम ‘संगीत’ का आता जिसे आँखें बंद कर के सुनो तो अंतर का सारा विषाद, तनाव और सरदर्द जैसा विकार भी आने आप मिट जाता कि स्वर लहरियां कर्ण के रास्ते जब मस्तिष्क तक पहुँचती तो एक मदहोशी स्वतः ही तारी हो जाती जो भीतर चलने वाले झंझावातों को मिटाकर राहत की अनुभूति भरी देती और कब सुनने वाला नींद की आगोश में आ जाता पता न चलता कि सुरों का जादू और मखमली आवाज़ की खनक किसी रूहानी शांति से कम नहीं अगर, गाने वाले के गले में सरगम का वास हो कुछ ऐसा ही वरदान महान गायक ‘मो. रफी’ को भी प्राप्त था जिनके गाये गीतों, गज़ल व भजनों ने श्रोताओं पर ऐसा प्रभाव डाला कि वे उनकी गायिकी के दीवाने हो गये और आज तलक भी उनके तराने युवाओं की जबान से सुनने की मिल जाते व रिमिक्स करने वालों की पहली पसंद बने रहते कि जब गानों में आम आदमी के दिल व परिस्थितियों का हाल मिल जाता तो वो उसकी अपनी आवाज़ बन जाता है          

आज आम आदमी की इन तीनों अलहदा आवाजों का स्मरण दिवस जिसने इन्हें 31 जुलाई से इस तरह जोड़ दिया कि किसी एक को भी भूल पाना मुमकिन नहीं... तीनों को नमन... !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
जुलाई ३१, २०१९


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