बेल पत्र
या हो अक्षत
पुष्प हो या
ताम्बूल
जो भी करो
प्रभु को समर्पित
मन ही मन में
जपते रहो
प्रभु शिव का
परम-पावन नाम
अंतर को जो
करें पवित्र
तन में भी
जगाये भक्ति का भाव
कर दे आत्मा
निर्मल
मिटा दे भीतर
भरे सारे कलुष
शिव नाम
पारसमणि सम
कंकर को बना दे
जो कुंदन और
प्राण फूंक जगा
दे शव
हर पीड़ा मिटा
दे
सारे कष्टों को
कर दे दूर
आत्मदीप हो
जगमग-जगमग
सर्वत्र फैलाये
दिव्य प्रकाश
घोर तप से बने
साधक कोहिनूर
योगबल से सधे
मनोबल
अक्षम भी बन
जाये पूर्ण सबल
इच्छा पूर्ति
हो सकल
आदिदेव महादेव
की पूजा
करें जो घर रहे
उसका भरा-पूरा
सावन का आया
सोमवार
प्रदोष का भी
आज मिला है साथ
कर दो भक्तों
आलस का त्याग
मुश्किल से
होता ये संयोग
जब तन-मन हो
जाते एकरूप
न जगेगा जब तक
अंतःबोध
होगा न मनसा,
वाचा, कर्मणा
पूर्णकाम ।।
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© ® सुश्री इंदु
सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर
(म.प्र.)
जुलाई २९, २०१९
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