बुधवार, 17 जुलाई 2019

सुर-२०१९-१९८ : #एकजुट_हिन्दू_अब_हो_गया #गलत_को_स्वीकार_नहीं_करता




‘सोशल मीडिया’ की ताकत का अहसास लगातार हो रहा जो अपराधी को पकड़ने या गलत के खिलाफ आवाज़ उठाने ही नहीं न्याय दिलाने में भी अपनी भूमिका निभा रहा और इसके माध्यम से जागरूकता फैलाने का कार्य भी प्रभावी तरीके से किया जा सकता है ये आज १९ वर्षीय ‘ऋचा पटेल’ के प्रकरण से बेहतर तरीके से समझ में आ गया जिसने अदालत के फैसले को न मानकर यूँ तो अवमानना की लेकिन, जब बात संवैधानिक अधिकारों की हो तो तब अदालत भी गौण हो जाती आखिर, वो उसका हिस्सा जो है जिस तरह से उसने जज साहब के निर्णय को अस्वीकार कर अपनी बात रखी और सज़ा के विरुद्ध आवाजा उठाई वो समस्त हिन्दुओं के लिये एक मिसाल जिसकी उसे जानकारी होना जरूरी कि अब उसे कानून या न्यायालिका के नाम पर भी डराया नहीं जा सकता अगर, वो गलत नहीं है इसके पूर्व तक तो हिन्दू इस तरह से मुखर होकर अपनी बात नहीं रख पाता था जिस तरह से उसने रखी और उस पर कायम भी रही तो अपेक्षित परिणाम मिलने में भी देरी नहीं हुई मात्र 72 घंटों के भीतर कोर्ट को अपना जजमेंट चेंज करना पड़ा जो एक ऐतिहासिक जीत है     

‘ऋचा पटेल’ का मसला न केवल उसकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बल्कि, उसकी धार्मिक आस्था के भी खिलाफ था वैसे भी उसने ऐसा कुछ लिखा या पोस्ट नहीं किया जो किसी मजहब विशेष के प्रति द्वेष को दर्शाता हो या सामाजिक सौहार्द्र में विष घोलता हो इससे भी अधिक ज़हर दूसरों के द्वारा आये दिन सोशल मीडिया पर बिखेरा जाता लेकिन, न तो उनकी शिकायत होती और न ही किसी को कोई आपत्ति होती कि संविधान के द्वारा प्रदत्त अभिव्यक्ति की आज़ादी एक ऐसा ब्रम्हास्त्र जिसकी आड़ में सब गुनाह माफ़ हो जाते तो जिसकी जो मर्जी आती वो धर्म व भगवान के लिये लिखता जिसके पक्ष में हजारों-लाखों खड़े भी हो जाते यही वजह कि एम.एफ. हुसैन देवी-देवताओं के नग्न चित्र बनाये या कोई देवी दुर्गा के विषय में गंदी बातें लिखता तो उसका समर्थन करने वाले उनके मजहब से ज्यादा हिन्दू ही नजर आते क्योंकि, गंगा-जमुनी तहज़ीब व सबका सम्मान उसे घुट्टी में घोलकर संस्कारों के साथ पिलाया जाता जिसका फेस उठाकर हिन्दूओं के धर्म को सॉफ्ट टारगेट समझ सब निशाना लगाते लेकिन, जिस तरह से सोशल मीडिया पर हिन्दू जागरण के लिये तमाम कलमकारों व समाज सुधारकों के द्वारा प्रयास किये गये उसका परिणाम कि अब वो अपने धर्म के प्रति सजग व सतर्क है और चुपचाप जुल्म सहन करने की बजाय गलत को गलत बोलने की हिम्मत रखता जिसका ताजा उदहारण ये १९ वर्षीय लड़की है जो इतनी कम उम्र में ही जानती कि कानून या न्याय व्यवस्था भी उससे जबरन वो नहीं मनवा सकते जिसे उसका आत्मसम्मान या धर्म नहीं मानता यही वजह कि वो अपने हक को समझते हुये ये लड़ाई लड़ भी सकी और जीती भी कि “धर्मो रक्षति रक्षितः” अर्थात जो धर्म की रक्षा करता है धर्म उसकी रक्षा करता है

‘ऋचा पटेल’ आश्वस्त करती है कि वो हिन्दू धर्म की रक्षक है और इस पौध के हाथों में हमारी संस्कृति सुरक्षित है वो ये भी जानती है कि सही या गलत क्या है तो उसके आधार पर ही अपनी बात रखती है और उसने जो पोस्ट लिखी उसमें भी नफरत बढ़ाने या किसी मज़हब को कमतर दिखाने जैसी कोई बात थी उसने तो बहुत ही साधारण प्रश्न उठाया था मगर, अंजुमन इस्लामिया (पिठोरिया) के प्रमुख मंसूर खलीफा ने पिठोरिया थाने में 12 जुलाई को प्राथमिकी दर्ज कराई जिसमें उन्होंने ऋचा पर मुस्लिम समुदाय की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने का आरोप लगाया जिसके बाद पिठोरिया पुलिस ने शुक्रवार की शाम को ऋचा को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया और जब इस मामले में गत सोमवार को फैसला आया तो न्यायिक दंडाधिकारी ‘मनीष कुमार सिंह’ की अदालत ने कुरान की पांच प्रतियां बांटने की शर्त पर ऋचा को जमानत दी साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि पिठोरिया पुलिस के संरक्षण में मंगलवार शाम तक ऋचा कुरान की एक प्रति अंजुमन इस्लामिया के सदर मंसूर खलीफा को देगी और बाकी चार विभिन्न शिक्षण संस्थानों में बांटेगी इसके लिए उनको 15 दिन का समय दिया गया परन्तु, ऋचा को ये बात नागवार गुजरी वे बोली कि, “आज कुरान बांटने को कह रहे हैं, कल कहेंगे इस्लाम कुबूल लो” और उसने इसके खिलाफ मोर्चाबंदी कर दी फिर क्या आज ही नई इबारत लिखकर पुरानी ख़ारिज कर दी गयी जो दर्शाता कि पहला कदम बढ़ाना जरूरी फिर मंजिल खुद चलकर पास आती है

ये अकेले ‘ऋचा’ की जीत नहीं है इसमें उन सब जागरूक हिन्दुओं का भी योगदान है जिन्होंने इस असंवैधानिक सजा पर उसका साथ दिया और वकीलों ने भी उन जज महोदय की खिलाफ़त की इन सबने मिलकर ऐसा दबाब बनाया कि उनको फैसला बदलने मजबूर होना पड़ा और उन्हें याद आया कि वो करांची नहीं रांची की सिविल कोर्ट के जस्टिस है आज का दिन ख़ास बना दिया जब आई.सी.जे. ने ‘कुलभूषण जाधव’ की फांसी को रोकने अपना मत दिया जिसने विश्व पटल पर भारत की अहमियत को जताया जिसने अपने देश के एक नागरिक की जान बचाने अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में गुहार लगाई और विजय हासिल की हालाँकि, पाकिस्तान विश्वसनीय नहीं तो इससे अधिक उम्मीदें नहीं जगती क्योंकि, उसने जीते-जागते ‘सरबजीत’ की जगह उसकी मृत देह को भेजा तो ऐसा ही कुछ इस मामले में भी कर सकता है फिर भी इतिहास में कम से कम ये तो दर्ज होगा कि हमने कोशिश की और ‘ऋचा पटेल’ कानून से भी डरी नहीं और किसी फतवे जैसे फैसले के आगे झुकी नहीं यही तो नया भारत है, नव जागरूक हिन्दू है जो अब अन्याय नहीं सहेगा, अपनी बात कहेगा... जय हिन्द... जय भारत... न्याय जिंदाबाद...      
  
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© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
जुलाई १७, २०१९

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