शुक्रवार, 5 जुलाई 2019

सुर-२०१९-१८६-#आनंद_बिखरा_इधर_उधर #ढूंढते_जिसे_साधनों_में_हम_बेखबर




हमने जितनी अधिक प्रगति और विकास की दौड़ में जितनी तेजी से भागे उसने हमको अनेकानेक सुख-सुविधाओं से तो लाद दिया और तकनीक ने भी हमारी झोली में बहुसंख्यक गेजेट्स व संसाधन डाल दिये जिनकी वजह से हम आज हम खुद को सबसे अधिक सुविधासंपन्न व ऐश्वर्यशाली समझकर फूले न समाते कि एक क्लिक या एक बटन दबाने से फटाफट सारे काम हो जाते है इस बात से हमारी मुस्कान ही नहीं ललक भी कुछ बढ़ जाती कि इससे ज्यादा कुछ पाने की चाह मन में घर कर जाती जिसके बाद शुरू होती एक ऐसी अंतहीन प्रतिस्पर्धा जिसके चलते हम न केवल सुख-चैन व सुकून के पल ही गंवा देते बल्कि, उन सुविधाओं के अम्बर पर सर पकड़कर बैठ जाते अनगिनत बीमारियों से घिर जाते है वो जिसे छोड़कर हमने इन सब साधनों को ये सोचकर जोड़ा था कि खुशियों का खजाना तो इसी में छिपा है अंततः ज्ञात होता कि वास्तविक सुख व आनंद तो वहीं था जिसे हमने अभाव समझा हम अनायास ही मुस्कराहट के उन पलों को अभिशाप समझ उनसे पीछा छुड़ाने में जुट गये जबकि, उन्हीं संघर्षों और रिक्तता में छिपे थे जिन्हें अपनी नासमझी या अज्ञानता में हम देख नहीं पाये थे

जब ये अहसास हुआ कि वे सभी सामान जो हमने अपने कीमती समय, जीवन के अनमोल लम्हों को बेचकर पाये हमें वो आनंद दे पाने में सक्षम नहीं जिसकी तलाश में हम भटक रहे व्यक्ति को सब कुछ पाने के बाद ही शिद्दत से महसूस होता कि उसे भौतिक सुविधायें नहीं आत्मिक सुख चाहिये जो भीतर ही मौजूद था लेकिन, हम देख नहीं पाये कि उस वक़्त तो इन दुनियावी जलवों से आँखें चकाचौंध हो रही थी जब इन्हें पाया तो जाना कि जो खो गया वो बहुमूल्य था फिर उसकी खोज शुरू की याने कि एक और गलती जो अंदर है उसे बाहर ढूँढने की बेवकूफी तो इस तरह एक अंतहीन तलाश जारी रहती है और अपने इस ध्येय को हम जल्दी से जल्दी पा सके, मखमली बिस्तर में बेफिक्र सो सके, ऊँची गद्दी या पद पर बैठकर चिंतारहित बन सके, अपने आलिशान घर, ऑफिस में माथे पर शिकन व अनींदी आँखों में फ़िक्र की जगह मुस्कान सजाकर न केवल स्वयं खुश रहे बल्कि, अपने मिलने-जुलने वालों को भी वो ख़ुशी व आनंद बाँट सके जिसकी उनको तलाश है यदि किसी एक ने भी उस मन्त्र को पा लिया तो फिर वो अपने सम्पर्क में आने वाले सभी को उससे अभिमंत्रित कर उनके जीवन को भी कस्तूरी जैसे आनंद की खुशबू से भर सके जो यूँ तो सबके भीतर समाई मगर, पकड़ उसी के आई जिसने अपनी यात्रा की दिशा बाहर के रास्तों से मोड़कर अपने ही भीतर कर ली हो

ऐसे व्यक्ति आनंदक बनकर दूसरों को आनंद बाँट सकते इस उद्देश्य से राज्‍य सरकार द्वारा ‘आनंद संस्‍थान’ का गठन 1 अगस्‍त 2016 में ‘आनंद विभाग’ के अर्न्‍तगत किया गया जो कि वर्तमान में ‘राज्‍य आनंद संस्‍थान, मध्‍यप्रदेश शासन’ के ‘अध्‍यात्‍म विभाग’ के अर्न्‍तगत संचालित हो रहा है जिससे जुड़कर हम ‘आनंदक’ बनकर आनंद की अनुभूति के उस स्वर्गिक अहसास से सबको परिचित करवा सकते इस हेतु से एक ‘जिला स्तरीय आनंद सम्मलेन’ कल 4 जुलाई को जिला पंचायत के सभागृह में आयोजित किया गया जिसमें जिले भर से आनंदकों ने शामिल होकर छोटी-छोटी गतिविधियों में सहभागिता कर ‘आनंद’ को किस तरह से खोजा व वितरित किया जा सकता है ये सीखा और ‘हेप्पी इंडेक्स’ के माध्यम से खुद का मूल्यांकन कर ये जाना कि उसका अपना जीवन कितना आनंदित है अलग-अलग अभ्यास के जरिये अपने जीवन में आने वाले उन इंसानों को भी पहचाना जिन्होंने कभी उनकी मदद की और कब वे किसी की सहायता कर सके या किसी के दुःख की वजह बने जिससे कि वे अपने आपको सुधार और अपने में आवश्यक परिवर्तन कर वो पारसमणि बन जाये जिसके स्पर्श से उसके करीब आने वाला हर एक व्यक्ति कुंदन बन जाये इसे सीखकर ऐसा बन पाना मुश्किल भी नहीं है

कल इस जिला स्तरीय आनंद सम्मेलन का हिस्सा बनकर हमने भी आनंद प्राप्त किया व आनंदक बनकर ये जिम्मेदारी भी ली कि दूसरों को भी खुशियाँ बाँटेंगे क्योंकि, आज यही वो अहसास जिससे हम दूर होते जा रहे इतनी भी फुर्सत नहीं कि हमारे इर्दगिर्द सर्वत्र कुदरत के जो अनगिनत दृश्य बिखरे पडे हम उन पर ही निगाहें डालकर उस ख़ुशी को पा ले जिसे खो चुके यहाँ तक कि मोबाइल के आने के बाद तो इतने व्यस्त हो गये कि अपने बच्चों के चेहरे पर खिली मुस्कान ही देख सके इतना भी वक़्त हमारे पास नहीं है ऐसे में राज्य सरकार का ये कदम सराहनीय है । इसकी एक मुख्य गतिविधि ‘अल्पविराम’ है जिसमें जीवन की आपाधापी से कुछ पल चुराकर अपने अंतर्मन में झांककर अपनी आत्मा की आवाज़ को सुनने का प्रयास करते जो शोर में सुनाई नहीं देती है यही वो समय होता जब हम आने अतीत में जाकर अपने पिछले बुरे अनुभवों को जेहन में से मिटाकर वहां पर सकारात्मक विचार लिख सकते है अपने मस्तिष्क की प्रोग्रामिंग इस तरह से कर सकते है कि वो नकारात्मकता को देखना ही बंद कर दे और हर जगह उसे सिर्फ आनंद ही दिखाई दे जो कठिन नहीं प्रयासों से किया जा सकता है ध्यान की अवस्था में पहुंचकर उस स्थितप्रज्ञ अवस्था को हासिल करना नामुमकिन नहीं और जीवन का सार वही है जो देर से समझ में आता जब समय हाथ से निकल जाता जबकि, यही ज्ञान पहले से हो जाए तो ज़िन्दगी पानी की तरह पारदर्शी व सहज सरल हो सकती है जिसे अनजाने में हम ही कठिन बना देते है                
      
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© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
जुलाई ०५, २०१९

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