मंगलवार, 16 जुलाई 2019

सुर-२०१९-१९७ : #सच्चे_गुरु_सबको_नहीं_मिलते #जिन्हें_तलाश_वही_ये_समझते



आषाढ़ शुक्ल की रात चन्द्रमा अपनी पूर्णता लिये आसमान में चमकता मगर, काले बादलों की ओट से निकलने उसे प्रयत्न करना पड़ता कि वर्षा ऋतु होने से उसके दर्शन अन्य दिनों की अपेक्षा सुलभ नहीं होते और ऐसी संघर्षमय दिन-रात की बेला के मध्य ‘गुरु पूर्णिमा’ आती जो ‘महर्षि वेदव्यास’ की जयंती भी कहलाती है इतने सारे शुभ संयोगों में गूढ़ अर्थ निहित जो दर्शाते कि सच्चा गुरु मिलना उसके दर्शनों का लाभ प्राप्त करना आसान नहीं होता उसके लिये कठिन तपस्या ही नहीं अंतर्मन में उस गुरु मिलन के लिये तीव्र प्रार्थना करनी पड़ती है तब कहीं जाकर प्रतीक्षा के बादल धीरे-धीरे सामने से हटते और उसके पीछे छिपे चन्द्र रूपी गुरुदेव का साक्षात्कार होता इसलिये इस दिन इस परम् पावन पर्व का आयोजन किया जाता जिसे औपचारिकता समझकर उसका निर्वहन करना हमें वो आनंद नहीं देता जो एक साधक को मिलता है

इसकी वजह ये कि उसने इस दिन के इंतज़ार में अपना सर्वस्व विस्मृत कर दिया वही घड़ी आज आई जब ‘चन्द्रग्रहण’ भी पड़ रहा जिसके समापन के बाद चन्द्रमा अपनी सोलह कलाओं समेत चमकेगा याने कि आज की रात संघर्ष अन्य दिनों की अपेक्षा अधिक है जो ये बताता कि जीवन में जितना अधिक कठिनाइयों का सामना होता लक्ष्य प्राप्ति में उतना ही आंतरिक सुख मिलता कि सहजता से मिलने वाला ज्ञान तो सर्वत्र बिखरा पड़ा होता पर, जो मुस्किल से मिले तलाश तो उसकी ही होती है आज सोशल मीडिया के जमाने में तो ये और भी अधिक आसान हो चुका मगर, वो दिव्यज्ञान जिसके लिए आत्मा व्याकुल बिना गुरु के सुलभ नहीं होता किसी के जीवन में ये पूर्णमासी जल्द आ जाती तो किसी को दीर्घ प्रतीक्षा के पश्चात ये अवसर मिलता और कुछ अज्ञानी ऐसे भी जिनको ये भी नहीं ज्ञात होता कि उनके जन्म का उद्देश्य क्या वे किस कार्य हेतु से धरती पर आये तो यूँ ही अपनी ज़िंदगी व्यतीत किये जाते है

सिर्फ वही जिनके अंतर में व्याकुल ‘चातक’ की तरह ऐसी पिपासा होती जो केवल स्वाति नक्षत्र में बरसने वाली जल की बूंदों से ही मिटती तो वो अनंत काल तक उस क्षण का इंतज़ार करता तब तक कोई समझौता नहीं करता अपलक सिर्फ अपने गुरु की राह निहारता जिसके बाद ही उसे उस पूर्णता का अहसास होता जो पूरनमासी की रात को चंदा को होता है आज वही दिन जब अपने जीवन में मिलने वाले उन तमाम गुरुओं के प्रति शिष्य अपने मन के भावों से उनके चरणों में श्रद्धा सुमन अर्पित करता और अपनी निष्काम भक्ति रूपी गुरु दक्षिणा देकर उनकी प्रदत्त शिक्षा का ऋण चुकाता चूँकि, वो उससे कभी उऋण नहीं हो सकता इसलिये प्रतिवर्ष ‘गुरु पूर्णिमा’ पर उसे थोड़ा-थोड़ा किश्तों में चुकाता है । वर्तमान में हालाँकि सच्चे ‘गुरु’ का मिलना कठिन पर, उससे भी ज्यादा मुश्किल उस ‘शिष्य’ का मिलना भी जो निःस्वार्थ भाव से अपने ‘गुरु’ के प्रति समर्पित हो और उनकी दी गयी शिक्षाओं को आँख मूंदकर मानता हो क्योंकि, अब तो लोगों के भीतर न तो वो जिज्ञासा और न वो उत्कंठा शेष ऐसे में प्राचीनकालीन गुरु-शिष्य परंपरा को बचाने गुरु पूर्णिमा का आयोजन अत्यंत जरूरी जिससे कि सनातन संस्कृति ही नहीं हमारी भी रक्षा हो सके ।  

आज हमने भी गायत्री मंदिर परिसर में गायत्री परिवार के साथ मिलकर ‘महिला पतंजलि योग समिति’ की तरफ से ‘गुरु पूर्णिमा महोत्सव’ मनाया और यज्ञ, पूजन, भजन व् पौधारोपण कर अपने गुरुदेव के प्रति भावांजलि देकर इसे सार्थक बनाने का प्रयास किया सभी को इस पावन दिवस की अनंत शुभकामनायें...!!!      
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© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
जुलाई १६, २०१९

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