सोमवार, 8 जुलाई 2019

सुर २०१९ १८९ #क्रिकेट_मैदान_भी_अखाड़ा_बने #बीच_मैच_भारत_विरोधी_नारे_निकले




'धर्म' के आधार पर वो कैसा बंटवारा हुआ जिसमें एक तरफ वालों को तो पूरी तरह से अपने मज़हब को मानने की आज़ादी दी गयी पर, दूसरी तरफ वालों को सर्वधर्म समभाव की नैतिकता का उपहार दिया गया?

वो कैसा विभाजन हुआ जिसमें सम्पूर्ण राष्ट्र में से अपना हिस्सा मांगने वालों को उनका अपना स्वतंत्र मुल्क तो दिया ही गया पर, साथ ही दूसरे हिस्से में भी उनकी भागीदारी को कायम रखा गया जिससे कि उसे आगे भी इसी तरह टुकड़े-टुकड़े में बांटा जा सके जैसे भारत कोई देश नहीं किसी के माई-बाप की कमाई जायदाद या पुरखों की मिल्कियत हो जिसमें से जायज हिस्सा दे देने के बाद भी हक़ बना ही रहता जिसे नया वारिस जब चाहे तब मांग सकता है ??

ये कश्मीर का भारत से किस तरह का एकीकरण या विलय हुआ जो ऐसा विवाद बन चुका कि समय के साथ सुरसा के मुंह की तरह बढ़ता ही जाता कभी जिसका अंत आता नहीं न जाने कौन-सी आसुरी शक्ति जो इसका समाधान होने ही नहीं देती और अब तो ये एक अंतरराष्ट्रीय समस्या ही बन चुका है ???

ये प्रश्न अनुत्तरित थे और शायद, हमेशा ही रहेंगे हालांकि, इतिहास में इनके जवाब छिपे हुये है  पर, मक्कार बुद्धिजीवी, शातिर वामपंथी, पाखंडी मानवतावादी, झूठे इतिहासकार और चालाक पत्रकार कभी-भी इस सच्चाई को सामने नहीं आने देना चाहते है । इसलिये वे तरह-तरह के दुष्प्रचारों से ये साबित करने में तुले रहते कि अपनी इस स्थिति के लिये हम खुद जिम्मेदार है जबकि, भारत देश का बंटवारा चंद लोगों ने मिलकर तय किया तब जबकि, विभाजन से पहले भारत की जनसंख्या 31.8 करोड़ थी एवं 1941 की जनगणना के मुताबिक तब हिंदुओँ की संख्या 29.4 करोड़, मुस्लिम 4.3 करोड़ और बाकी लोग दूसरे धर्मों के थे । ऐसी परिस्थितियों में भी जब हिन्दू अपनी बात न रख सका तब उम्मीद ही कि जा सकती कि दबाब किस हद का होगा जो बहुसंख्यकों पर अल्पसंख्यक भारी ही नहीं अपनी बात मनवाने में भी आगे रहे शायद, इसलिए एक दिन पूर्व उनका स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता है । उस समय मुसलमानों के हित में बनी मुस्लिम लीग ने मुसलमानों के पक्ष में अधिकार मांगे जिसे बहुमत ने ठुकरा दिया जिसके परिणामस्वरूप अल्पमत मुस्लिम लीग ने न केवल अलग राष्ट्र की मांग कर दी बल्कि उसे पाने में भी वे सफल रहे जिसका खामियाजा उन्होंने भुगता जो इस सबमें शामिल नहीं थे और न जाने कब तक कितनी पीढियां इस पीड़ा को झेलती रहेंगी ।

इस तरह से तो हिन्दू-मुसलमान की लड़ाई पर उस वक़्त ही पूर्णतया विराम लग जाना था मगर, 29 करोड़ हिंदुओं में ताकत ही न थी कि 4 करोड़ मुसलमानों को गंगा-जमुनी तहजीब के वास्तविक मायने समझा सके वो तब भी मजबूर थे और आज भी लाचार है । क्योंकि, इसमें 'गंगा' हो या 'जमुना' दोनों हिंदुओं की और जो बाकी रही 'तहजीब' तो वो नहीं सिखाती कि आपस में मिलकर रहो उनकी तहजीब हो या मज़हब सब एकतरफा है । जिसका पालन केवल आपको करना वे अपने ईमान व अल्लाह रसूल के पक्के तो उसका वास्ता देकर हर मानवीयता से पल्ला झाड़ लेते कि उनके यहां ये सब होता नहीं और जो पवित्र किताब में दर्ज नहीं उसे वो मानते नहीं लेकिन, आप तो सहनशील व मानवतावादी तो आप कैसे किसी को हलाल कर सकते अतः  खामोशी से जिबह हेतु अपनी गर्दन आगे कर दो या फिर बिना मर्जी के क्योंकि, होगा तो वही जो उन्होंने तय कर रखा आपको केवल उसे मानना क्योंकि, चुनने की आज़ादी सिर्फ उनके पास है ।

1947 में भारत और पाकिस्तान तो बन गये पर, कश्मीर अभी भी किसी तरफ नहीं था जबकि, भारतीय स्वतंत्रता एक्ट 1947 के अनुसार तमाम रियासतों को यह चयन करने की सुविधा दी गई कि वे भारत के साथ रहना चाहते हैं या फिर पाकिस्तान के साथ जुड़ना चाहते हैं । उस समय जम्मू-कश्मीर देश की सबसे बड़ी रियायत हुआ करती थी जिस पर हिन्दू 'महाराजा हरी सिंह' शासन करते थे और पाकिस्तान को वहां की मुस्लिम आबादी के हिसाब से यह पूरा भरोसा था कि यह रियासत पाकिस्तान के साथ जाएगी, लेकिन हरी सिंह अपने राज्य को न तो पाकिस्तान और न ही भारत में मिलाना चाहते थे। लिहाजा उन्होंने स्वतंत्र रहने का फैसला किया। यदि ऐसा भी होता तो ये प्रॉब्लम नहीं होती जो आज है परंतु, पाकिस्तान को हरी सिंह से निराशा हाथ लगी तो उसने कश्मीर को हथियाने का एक दूसरा हथकंडा अपनाया और पाकिस्तानी सेना को पश्तून आक्रमणकारियों के वेश में जम्मू कश्मीर पर कब्जा करने को भेजा जिसमें कुछ स्थानीय मुस्लिमों का भी सहयोग मिला जिस तरह आज भी वहां के अधिकांश नेता पाकिस्तान में शामिल होने या वहां का झंडा उठाने की धमकी आये दिन देते रहते है उसी तरह कुछ दगाबाज तब  भी थे और पाकिस्तान द्वारा कश्मीर को हड़पने की घृणित आतंकी कोशिशें आज भी जारी है ।

उस वक़्त भी उनकी वजह से पूरी जम्मू-कश्मीर सल्तनत में हाहाकार मच गया हर ओर खूनखराबा हो गया और इस तरह पहले भारत-पाक युद्ध की रूपरेखा बनने लगी जिसे देखकर परेशान महाराजा हरी सिंह ने भारत से मदद मांगी । फिर 26 अक्टूबर 1947 को महाराजा हरी सिंह ने भारत के साथ समझौता किया उन्होंने दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करके जम्मू-कश्मीर को भारत में शामिल करने की आधिकारिक सहमति दी केवल, शर्त यह रखी कि भारत अपनी सेना भेजकर आक्रमणकारियों को जम्मू-कश्मीर से खदेड़ दे । भारतीय सेना ने आक्रमणकारियों को खदेड़ना शुरू किया और भारत ने 1 जनवरी 1948 को संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद के सामने कश्मीर मुद्दा रखा तब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने 21 अप्रैल 1948 को प्रस्ताव 47 पारित किया जिसके तहत दोनों देशों को संघर्ष विराम साथ ही पाकिस्तान से कहा कि वह जम्मू-कश्मीर से शीघ्र पीछे हटे । इसके पश्चात भारत की संविधान सभा ने 17 अक्टूबर 1949 को धारा 370 को अपनाया जिसके तहत जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा दिया गया लेकिन, इतने के बाद भी कोई निश्चित हल हुआ नहीं बल्कि, ये भी एक अनिर्णीत समस्या बन गया जिसका परिणाम कि आतंकवादी हमले आज भी जारी है ।

शनिवार 6 जुलाई को तो हद ही हो गई जब आईसीसी विश्व कप क्रिकेट के दौरान राजनीति से प्रेरित एक और घटनाक्रम के तहत भारत-श्रीलंका लीग मैच के दौरान 'हेडिंग्ले मैदान' के ऊपर से भारत विरोधी बैनरों के साथ विमान थोड़े-थोड़े अंतराल से गुजरे । मैच शुरू होने के थोड़ी देर बाद ही मैदान के ऊपर से एक विमान गुजरा जिसके साथ बैनर पर  "Justice for Kashmir'' (कश्मीर के लिए न्याय) लिखा हुआ था इसके आधे घंटे बाद ही स्टेडियम के ऊपर से एक और विमान गुजरा जिसके बैनर पर लिखा था, ''India Stop Genocide, Free Kashmir'' (‘‘भारत नरसंहार रोको, कश्मीर को आजाद करो’’) यही नहीं भारत की पारी के दौरान तीसरा विमान गुजरा जिसके बैनर पर लिखा था, "Help End Mob Lynching'' (‘पीट पीट कर मारना खत्म करने में मदद करो) दस दिनों के अंदर इस तरह की यह दूसरी घटना है इससे पहले अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच खेले गये मैच के दौरान बलूचिस्तान के समर्थन वाले बैनर लहराते हुए विमान मैदान के ऊपर से उडे थे जो बताते कि खेल के मैदान भी अब राजनीति का अखाड़ा बन रहे और सबका निशाना केवल भारत है ।

यही नहीं अमेरिकी विदेश विभाग ने 'अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता' पर एक रिपोर्ट प्रकाशित की जिसके अनुसार भारत में 2018 के दौरान सालभर अल्पसंख्यकों खासतौर पर मुस्लिमों पर हिंदू संगठनों की भीड़ ने हमले किए हैं । जो लोग हिंसा का शिकार हुए हैं, उनमें अधिकतर गौवंश की खरीद और बीफ के कारोबार में लगे हुए थे इस रिपोर्ट को इंडिया 2018 इंटरनेशनल रिलीजियस फ्रीडम रिपोर्ट नाम दिया गया है । रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि मोदी सरकार भीड़ द्वारा धर्म और गौरक्षा के नाम पर हुए हमलों को रोकने में नाकाम रही है बीते साल सरकार की आलोचना करने वाले लोगों और अल्पसंख्यकों पर कई बार हमले हुए । भारत ने इस अमरीकी रिपोर्ट का खंडन किया भारतीय विदेश मंत्रालय का कहना है कि भारत को अपनी धर्मनिरपेक्षता पर गर्व है और भारत एक जीवंत लोकतंत्र है, जहां अल्पसंख्यकों सहित सभी नागरिकों के मौलिक अधिकारों को संविधान के तहत संरक्षित किया गया है । विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने कहा है, "हम हमारे नागरिकों की स्थिति पर किसी विदेशी सरकार की टिप्पणी को जरूरी नहीं समझते, जिनके (नागरिकों) अधिकार संवैधानिक रूप से संरक्षित हैं" ।

समझ नहीं आता कि, इन सबको पाकिस्तान में खत्म होते हिन्दू नजर नहीं आते, न ही बढ़ते हुए इस्लामिक राष्ट्रों पर कोई आपत्ति और न ही आतंकवाद के खिलाफ एकजुट होते भले कितने भी सैनिक मार दिए जाये क्यों ???  कोई भी उनके लिए आवाज़ नहीं लगाता पर, भारत में कोई मुसलमान छींक भी मारे तो अमेरिका तक सुन लेता जबकि, हमारे यहां जनता ही इतनी जागरूक जो हर गलत बात का विरोध करती यहां तक कि सोशल मीडिया पर भी उनके पक्ष में खड़ी दिखाई देती तब ये हालात है ऐसा लगता, भारत को पुनः हथियाने की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कोई साज़िश चल रही जिसे इस वक़्त हम समझ नहीं पा रहे ऐसे में यही कर सकते कि हर गतिविधि चाहे वो छोटी हो या बड़ी नजरअंदाज न करे और एकजुट रहे क्योंकि, इसी कमजोरी का सब फायदा उठाते है ।

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© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
जुलाई ०८, २०१९

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