रविवार, 28 जुलाई 2019

सुर-२०१९-२०९ : #प्रकृति_का_सरंक्षण_हो_किस_तरह #उसे_नुकसान_पहुंचा_रहे_जब_हम_निरंतर




‘समाचार पत्र’ हो ‘सोशल मीडिया’ या फिर ‘न्यूज़ चैनल’ सभी ‘भारत’ के विभिन्न इलाकों में आई बाढ़ के हृदय विदारक दृश्यों से भरे पड़े जिनमें इसे ‘प्राकृतिक आपदा’ या ‘विभीषिका’ कहकर ही उल्लेखित किया जा रहा है कोई भी ये नहीं कह या लिख रहा कि इसके लिये हम ही जिम्मेदार भूल गये कि हमने ही तो इसे आमंत्रित किया था उस दिन जब नदी-नालों को पाटकर उनके उपर अपने बड़े-बड़े आलीशान मकान बनवा लिये थे तब नहीं सोचा कि कल जब बारिश होगी तो उस पानी को आने वाले कल के लिये कहाँ सुरक्षित रखेंगे उस वक़्त तो गृह-प्रवेश की पार्टी में लोगों को बुलाकर उसकी नुमाइश कर खुश हो रहे थे अब जब घर में पानी भर गया तो उसे ही कोस रहे है पर, जरा एक बार सोचे तो सही कि जब हम नदी पर घर बनायेंगे तो फिर उसे घर में आने से किस तरह रोक पायेंगे काश, पहले ये ख्याल किया होता तो आज ये मुश्किल स्थिति न होती फिर भी अभी भी ये समझ ले तो बहुत देर नहीं हुई है

इसके बाद हो सकता स्थिति काबू से बाहर हो जाये जो अब तक नियन्त्रण में है अभी नहीं तो कभी नहीं ये ध्यान रखना होगा अन्यथा, आगे आने वाली तस्वीरें इससे भी अधिक भयावह हो सकती है इस भीषण बाढ़ के इन दारुण चित्रों को देखकर भी यदि हम इसे कुदरत का कहर मानकर ख़ारिज कर दे तो गलती हमारी ही होगी कि प्रकृति लगातार हर मानसून में हमें इस तरह से सचेत कर रही है फिर भी नहीं लगता कि कोई ये सोच रहा होगा उसके मन में तो यही ख्याल आ रहा होगा कि अगली प्रॉपर्टी कहाँ खरीदेगा किसी जंगल में या किसी खेत को खाली करवाकर वहां अपने बच्चों के लिये घर बनायेगा जिससे कि उसे कोई असुविधा न हो कोई ये नहीं सोचता कि जब जंगल या खेत ही नहीं बचेंगे तो फिर साँस किस तरह लेगा या खायेगा क्या कि सबकी सोच पैसे कमाने और उसके इन्वेस्टमेंट में ही टिकी जिससे कि फ्यूचर सिक्योर हो पर, जो सबसे जरूरी जीवन के लिये उस कुदरत को बचाने के लिये किसी के जेहन में कोई विचार नहीं आता है

जो इसे बचाने में लगे उनको भी कोई सहयोग नहीं करता कि सब अपने में बेहद व्यस्त जबकि, जरूरत पहले सांसों के लिये ऑक्सीजन की व्यवस्था करने की है न कि उसे प्रदान करने वाली हवा में जहर घोलने की जो हम सब अपनी प्रकृति विरोधी हरकतों से लगातार कर रहे है । हम प्लास्टिक के खतरों को जानने के बावजूद भी अपने घरों के सामान पर नजर नहीं डालते जिनमें से अधिकांश उसी से निर्मित हम में से कितने जिन्होंने कपड़े का थैला अपने बैग या गाड़ी में रखना शुरू किया या केवल दूसरों से अपेक्षा कि वे ही कुदरत बचाये हम तो बस, उसका उपभोग करेंगे । इसी तरह से लोग ‘ग्लोबल वार्मिंग’ की चिंता और बातें तो बड़ी करते लेकिन, ए.सी. या गाड़ी के बिना नहीं रह सकते घर में हर सदस्य का अलग-अलग ए.सी. / टी.वी. / गाड़ी इसके बाद न जाने किस मुंह से कहते इस बार गर्मी बहुत पड़ रही है । ज्यादातर किसानों ने खेती की जमीन को अधिक कीमत के लालच में बेच दिया उसके बाद सबके मुंह से यही सुनाई देता कि महंगाई लगातार बढ़ रही, खाने-पीने की चीजों के दाम आसमान छू रहे, गाय-भैंस कोई पालन नहीं चाहता पर, शुद्ध दूध-घी की कामना सबको तो किस तरह ये पूर्ति होगी कभी सोचा है ।   

इन सब सवालों व समस्याओं का एक ही जवाब ‘प्रकृति का सरंक्षण’ जिसके लिये सारी दुनिया में आज 28 जुलाई को ‘विश्व प्रकृति सरंक्षण दिवस’ मनाया जाता जो मनाने नहीं कुछ कर गुजरने का दिन है जिसकी बधाई देने की नहीं बल्कि, ये कटू सच्चाई सामने रखने की आवश्यकता इसलिये इन दृश्यों के माध्यम से इसे सबके समक्ष रखने का दुस्साहस किया जिससे कि हम जानें कि जो कुछ भी अप्राकृतिक या अमानवीय हो रहा उसकी नींव कहीं न कहीं हमने ही रखी फिर उस पर बनी इमारत किस तरह से न गिरती । हम सब जंगलों-खेतों की ही नहीं बचाये बल्कि, वे सभी उपाय भी अपनाये जिनसे कुदरत को नुकसान न हो चाहे फिर वो प्लास्टिक को ‘न’ कहने की हो या पेड़-पौधे रोपने की या फिर गेजेट्स व प्रोपर्टीज को कम से कम अपनाने की या नदी-तालाबों को बचाने की जो भी सम्भव हो सब कुछ करना है । ये नहीं सोचना कि ‘डायनासोर’ लुप्त हो गये तो बाकि के न होने से क्या हो जायेगा भला बल्कि, ये सोचना है कि उनकी तरह कहीं हम भी विलुप्त न हो जायें तभी ‘प्रकृति’ का बचाव हो सकता है ।    

#Say_No_To_Plastic
#Save_Forest_Save_Environment
#Minimize_The_Use_Of_Gadgets_Car_And_AC      
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© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
जुलाई २८, २०१९

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