मंगलवार, 2 जुलाई 2019

सुर-२०१९-१८३ : #जो_शेष_उसे_बचा_लो #या_फिर_मरने_को_तैयार_रहो




आये दिन हमारे सामने ऐसे कई दृश्य आते जो हमें ये अहसास कराते कि हम कुदरत को दिनों-दिन कितना नुकसान पहुंचाते जा रहे जिसका खमियाजा उसमें रहने वाले मूक पशु-पछी, जीव-जंतु ही नहीं पेड़-पौधे भी भुगतते पर, वे न तो प्रतिकार कर सकते और न ही हमारे विकास व तकनीक से अपनी जान ही बचा सकते है । वे तो ये भी नहीं समझते कि उनका जीवन हमारे लिये कितना जरूरी वे तो हमारे बिना जी सकते लेकिन, हमारा उनके बिना जीवन सम्भव नहीं अन्यथा वे जरूर अपनी अहमियत का फायदा उठाते तब हमें उनकी रक्षा करनी पड़ती ।

हमने अपनी बौद्धिकता व स्वार्थ के चलते जैसे ही ये जान लिया कि प्रकृति द्वारा मुफ्त में दी गयी सभी नेमतें बेहद अनमोल जिनका हम निर्माण नहीं कर सकते पर, इनसे जीवन-यापन करने के साथ-साथ अत्यंत लाभ भी कमा सकते है । बस, ये ज्ञान प्राप्त होते ही हमने जो प्राकृतिक खजाने का दोहन शुरू किया तो ये भूल गये कि हमारे पैरों के नीचे से जमीन ही खिसकती जा रही आसमान, हवा, पानी प्रदूषित हो रहा जिन्हें हम बना नहीं सकते और सभी सम्पदा विलुप्त हो रही जिनकी समाप्ति पर हमारे जीवन का भी अंत छिपा हुआ है ।

धीरे-धीरे सूरज का तापमान 50 डिग्री पर पहुंच रहा हम झुलस रहे पर, चिंता जताने से आगे नहीं बढ़ रहे, खाने-पीने की समाग्री लगातार घट रही पर, खेती की जमीन पर बिल्डिंगें खड़ी करने से पीछे न हट रहे लोगों को प्रॉपर्टी की तो परवाह पर, भूख इनसे नहीं मिटती इस सच को जानकर भी अनजान बना हुआ कि सब कुछ अभी थोड़े मिटा है । कहने का तात्पर्य कि ये मानवीय प्रवृति जब तक उसे लगता कि कुछ भी बचा है तब तक वो निश्चिंत रहता और आग लगने पर ही कुआं खोदता जबकि, पहले से यदि व्यवस्था रखे तो बिगड़ी को संभाल सकता मगर, उसे तो लग रहा कि पृथ्वी यदि नष्ट हो भी गयी तो क्या मंगल, चांद व अन्य ग्रह तो बाकी उन पर जाकर रह लेंगे अर्थात कोई भी संभावना सामने नजर आती तो भविष्य के लिए कुछ करने की बजाय वो बेफिक्र होकर सोना पसन्द करता है ।

अभी भी इतनी सारी खबरें नित आती लेकिन, उनके समाधान हेतु कोई प्रयास सामूहिक स्तर पर नहीं होता केवल, वे जो जागरूक या आने वाले विनाश को लेकर चिंतित वही अपने स्तर पर खामोश कार्य किये जाते जिसकी वजह से हमें समस्या की भयावहता समझ नहीं आती है । जो संकेत या चिन्ह हमें बार-बार अलर्ट करने हमारे सामने आते हम उनको नजरअंदाज कर आगे बढ़ जाते मगर, अब वो समय आ गया कि हम इन्हें देखकर न तो चुप रहे और न ही निष्क्रिय बल्कि, जहां जो सम्भव या जिसकी आवश्यकता तत्काल वो करें गिलहरी जैसा नन्हा प्रयास जो कुदरत को बचाये वो भी सरहानीय है ।

ऐसा ही एक काम किया अमेरिका के फ्लोरिडा के लार्गो की रहने वाली 'करेन मेसन' ने जिन्होंने 20 जून को एक तस्वीर ली जिसमें चिड़िया का बच्चा अपने मुंह में सिगरेट का टुकड़ा दबाए हुए है उन्होंने इस तस्वीर को केवल अपने पास ही सुरक्षित नहीं रखा बल्कि, जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से उसे अपने फेसबुक पेज पर शेयर किया और कैप्शन लिखा,

“स्किमर चिक को उसके पैरेंट ने सिगरेट के बट की पेशकश की यदि आप सिगरेट पीते हैं तो कृपया सिगरेट के बट्स कहीं भी न छोड़ें अब, समय आ गया है कि हम अपने समुद्र तटों को साफ करें और उनके साथ इस तरह का व्यवहार करना बंद करें”  

समुद्र तट पर अपने बच्चे को सिगरेट का टुकड़ा खिलाती इस मदर बर्ड की इस दारुण तस्वीर ने हर किसी का ध्यान अपनी तरफ खींचा और उसे सोचने पर मजबूर किया कि उसकी वजह से निर्दोष पशु-पंछी किस तरह से अपनी जान गंवा रहे प्रकृति ने हमें जीवन दिया और हम उसे मौत दे रहे है । हमें अपने इस कृत्य पर शर्मिंदा होना चाहिए मगर, अपनी लाइफ का जश्न मनाये जा रहे है क्योंकि, अभी ये स्थिति हमारे बच्चों के साथ नहीं आई जब कभी ऐसा हुआ तब सोचेंगे तब तक मौज-मजा किया जाए आखिर, चार दिन की ज़िंदगी है क्यों, उसे फ़िज़ूल की चिंताओं या बातों में गंवाना यदि कुदरत की ये मासूम निरीह सन्तानें खत्म भी हो गयी तो हमें क्या ?

उल्टा इनके न होने से हमको तो फायदा ही है सारी जमीन, सारा आसमान, जंगल सब हमारा हो जाएगा फिर जहां चाहे रहो, जो चाहे करो पर, एक पल ये ख्याल न आता कि ये सब इस सृष्टि को चलाने में हमसे अधिक योगदान दे रहे और इनके होने से हमारा भी इस पृथ्वी पर रह पाना सम्भव है अन्यथा, इनके अभाव में कीट-कृमि बढ़ जायेंगे जो हमारा जीवन दुश्वार कर सकते है फिर भी ऐसी भयावह कल्पनाओं से भी हम नहीं डरते कि ये भयानक भविष्य अभी कोसों दूर तब तक हम तो बढ़िया से जीकर निकल जायेंगे जो बचेंगे वो सोचे और देखें कि उन्हें इन हालातों में क्या करना मेरा तो इतने पानी व ऑक्सीजन में अच्छे से जीवन कट जायेगा इस स्वार्थी सोच ने हो ये बेड़ा गर्क किया हुआ है ।

ये तस्वीर और ऐसे अनेकानेक दृश्य जो प्रतिदिन हमारी आंखों के सामने आते हमें संकेत कर रहे कि, वक्त आ गया है कि हम चेतें इससे पहले की बहुत देर हो जाये बात सिर्फ एक सिगरेट के बट की नहीं है हम ऐसा बहुत कुछ कर रहे हैं जिससे वन्यजीव खतरे में पड़ रहे हैं चाहे वो प्लास्टिक का इस्तेमाल हो या एसी या अन्य गेजेट्स सभी न केवल पर्यावरण बल्कि, हमारे स्वयं के लिये भी खतरा है इन सबको हम जितना इग्नोर करेंगे और कोई सकारात्मक कदम न उठाएंगे प्रकृति उतनी ही तीव्रता व क्रोध के साथ इसका प्रतिकार करेगी तब फिर आज के जैसे मूकदर्शक बनने के हम कुछ न कर सकेंगे क्योंकि, करने वाला समय जब था हम यूँ ही बातों या व्यर्थ कामों में उसे व्यतीत कर रहे थे ।

ये वो अवसर है जिन्हें हमें समझना है, झपटना है, बाद में हमारे हाथ में कुछ न रहेगा कुदरत के प्रकोप को चुपचाप झेलने के सिवाय हमारी अभी की खामोशी हमारे ही नहीं आने वाली पीढ़ी के भविष्य को भी खतरे में डाल रही है इससे पहले कि प्रलय आये, आओ हम फिर से इस दुनिया को सबके रहने लायक बनाये, इस मानसून अधिक से अधिक पेड़-पौधे लगाये, जल सरंक्षण से पानी बचाये और विलुप्ति की कगार पर पहुंच रही प्रजातियों को फिर से बसाये... ये वसुंधरा केवल हमारी नहीं, इसमें सबका हिस्सा और सबका हक है ।

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© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
जुलाई ०२, २०१९

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