बुधवार, 24 जुलाई 2019

सुर-२०१९-२०५ : #बांग्ला_फिल्मों_के_दिलीप_कुमार #संवेदनशील_कलाकार_उत्तम_कुमार




हिंदी सिने जगत के ट्रेजेडी किंग कहे जाने वाले महानायक ‘दिलीप कुमार’ एक ऐसे महान अभिनेता है जिन्होंने अपने संजीदा अभिनय व दिल में उतरने वाली सम्वाद अदायगी से उस दौर में न जाने कितने ही युवाओं को इस क्षेत्र में आने को प्रेरित किया और एक के बाद एक कई अदाकार आये जिन्होंने आने जीवन के किसी पड़ाव पर ये स्वीकार भी किया कि वे उनके द्वारा अभिनीत फिल्मों को देखकर ही अभिनय की दुनिया में आने के बारे में सोच सके और जब अवसर मिला तो उन्होंने अपने द्वारा निभाये गये पात्रों में कहीं न कहीं उनकी तरह एक्टिंग करने का प्रयास किया

हालाँकि, कोई भी दूसरा ‘दिलीप कुमार’ नहीं बन सका मगर, सबका लक्ष्य यही था कि कम से कम उन्हें एक बार तो सही ऐसा अवसर मिले कि वे बता सके कि उनको भी उस तरह से अदाकारी करना आता है जिसमें कौन कितना सफल हुआ ये तो नहीं पता मगर, 'अरुण कुमार चटर्जी' आज जिनकी पुण्यतिथि जिन्हें हम सभी ‘उत्तम कुमार’ के नाम से भलीभांति जानते वे बांग्ला फिल्मों में काम करने वाले और अपनी फ़िल्मी दुनिया के बेताज बादशाह थे एवं उनके यहाँ उन्हें ‘बांग्ला दिलीप कुमार’ कहा जाता था क्योंकि, उनके काम की शैली भी वही थी और वे जो किरदार निभाते उसी रूप में ढल जाते जिस तरह से ‘दिलीप साहब’ किये करते एवं उनकी छवि में भी दिलीप कुमार का अक्स दिखाई देता था

इस तरह से इस उपनाम ने उनके कद को बढाने का ही काम किया जिसकी वजह से उनकी ख्याति किसी पुष्प की सुगंध की भांति इतनी फैली कि उन्हें हिंदी सिनेमा में भी काम करने के लिये आमंत्रित किया गया हालाँकि, उन्होंने हिंदी में कम ही फिल्मों में काम किया जिनमें ‘छोटी-सी मुलाकात’, ‘अमानुष’, ‘आनंद आश्रम’, ‘किताब’ एवं ‘दूरियां’ महज़ चंद फ़िल्में ही उनके खाते में दर्ज मगर, जो भी की वे मील का पत्थर कहलाई और उनके नाम से इस तरह याद की जाती  कि इन गिनी-चुनी फिल्मों की वजह से उन्हें जाना व पहचाना जाता और जो भी सच्चे सिने प्रेमी बिला शक उन्होंने ये सभी फ़िल्में अवश्य देखी होंगी कि इन सबने अपने केवल उनके अभिनय ही नहीं गीत व कहानी से भी सबका ध्यान आकर्षित किया था            

दिल ऐसा किसी ने मेरा तोड़ा
बर्बादी की तरफ ऐसा मोड़ा
एक भले मानुष को अमानुष बनाकर छोड़ा... 

शायद ही कोई हो जिसने ये गीत न सुना या देखा हो आज भी अक्सर, ये सुनाई दे जाता और उस पर अभिनय करते ‘उत्तम कुमार’ को भी लोग पहचान जाते जिनकी अदाकारी ने अपनी अलग छाप छोड़ी आज उनकी पुण्यतिथि पर उनका स्मरण उनके अभिनय की ही तरह सहज ही हो जाता कि अच्छे कलाकार सदैव संख्या नहीं गुणवत्ता के लिये जाने जाते इसलिये चंद फिल्मों से ही चाहने वालों के दिलों में अपनी याद छोड़ जाते है


अपनी इच्छा के अनुसार वे बांग्ला फिल्म में अभिनय करते हुये शूटिंग के दौरान 24 जुलाई 1980 को हुये हृदयाघात से हम सबको छोड़कर चले गये पर, इसके पूर्व 1979 में उन्होंने हिंदी मूवी ‘दूरियां’ में काम किया उसी के गीत के द्वारा उनको श्रद्धांजलि...  

जिंदगी, ज़िन्दगी...
मेरे घर आना ज़िन्दगी
मेरे घर का सीधा सा इतना पता है
ये घर जो है चारों तरफ़ से खुला है
न दस्तक ज़रूरी, ना आवाज़ देना
मेरे घर का दरवाज़ा कोई नहीं है
हैं दीवारें गुम और छत भी नहीं है
बड़ी धूप है दोस्त
खड़ी धूप है दोस्त
तेरे आंचल का साया चुरा के जीना है जीना
जीना ज़िंदगी, ज़िंदगी
ओ ज़िंदगी मेरे घर आना
आना ज़िंदगी, ज़िंदगी मेरे घर आना

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© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
जुलाई २४, २०१९

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