बुधवार, 3 जुलाई 2019

सुर-२०१९-१८४ #संविधान_ने_हमको_दिया_क्या #कर्तव्य_और_सहिंष्णुता_से_लाद_दिया



‘संविधान’ की मूल ‘प्रस्तावना’ तक को बदलकर उसमें जबरदस्ती ऐसे शब्द ठूंस दिये गये जिनका पालन सिर्फ और सिर्फ सवर्णों को करना है जिससे कि बाकी दूसरों को सारी सहूलियतें और अधिकार मिले इसे बकायदा थोपने के लिये हिंदुओं की झोली में उसकी कायरता को देखते हुये ‘सहिंष्णुता’ व ‘धर्म निरपेक्षता’ का प्रसाद डाल दिया गया चूंकि, वो बहुसंख्यक है तो जब तक तथाकथित 'अल्पसंख्य' “सनद रहे इस देश में ‘माइनॉरिटी’ के बारे में संविधान में चाहे जो भी लिखा हो लेकिन, मायने उसके महज़ एक ही कौम, समुदाय व मज़हब से लगाये जाते है” धीरे-धीरे उनके समकक्ष न आ जाये वो अमन, भाईचारे व गंगा-जमुनी तहजीब का राग अलापे उसके बाद तो शरीयत लागू हो ही जानी है तो संविधान अपने आप ही खारिज़ मान लिया जायेगा इसलिए 1976 में 42वां संशोधन कर उसमें तीन नये शब्द ‘समाजवादी’, ‘धर्मनिरपेक्ष’ व ‘अखण्डता’ जोड़े गये जिसके बाद इसका नया स्वरूप यूँ सामने आया...

“हम भारत के ‘लोग’, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके ‘समस्त नागरिकों’ को न्याय, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए तथा, उन सबमें व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित करनेवाली बंधुता बढ़ाने के लिए, दृढ़ संकल्प होकर अपनी संविधानसभा में आज तारीख 26 नवम्बर 1949 ईस्वी (मिति मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी, संवत दो हजार छह विक्रमी) को एतद् द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं”।

इसे संशोधित तो कर दिया पर, तारीख वही रखी जो संविधान निर्माता डॉ भीमराव अंबेडकर जी ने स्वीकृत की थी इसे भी बदला जाना था जब ये शब्द उन्होंने नहीं जोड़े और न ही उनके द्वारा प्रस्तावित प्रति में ही इसका उल्लेख था लेकिन, ये सब क्योंकि, साजिशन किया गया तो मूल तिथि को ज्यों का त्यों छोड़ दिया ताकि, नई पीढ़ी जो ज्यादा खोजबीन कर के नहीं पढ़ती या जिसे इन सबमें दिलचस्पी नहीं वो इन षडयंत्रो को समझ नहीं सके इस तरह ‘सवर्ण’ बोले तो ‘हिंदुओं’ को ये नया डोज पिलाया गया जिसमें भले शुरुआती पंक्तियां हम भारत के लोग हो लेकिन, कहीं न कहीं ‘लोग’ का तात्पर्य ‘हिन्दू’ तथा ‘समस्त नागरिकों’ से अभिप्राय ‘मुसलमान’ ही है बस, ये शब्द मि. इंडिया की तरह अदृश्य है

उसको पिछले 50-60 सालों में उसे इस तरह से ये शब्द रटवा दिए गए कि उसने भी मान लिया कि इसका पालन केवल उसे करना है और दूसरी कौम को बढ़ने के पूरे अवसर मुहैया करवाने में सरकार के किसी भी काम या योजना में न तो मीनमेख निकालना है और न ही शंका करना है इसलिये तब से आज तक वही हो रहा है अल्पसंख्यक बढ़ रहा है, फलफूल रहा है और बराबरी के स्थान पर आने से केवल कुछ कदमों की दूरी पर है तो तब तक थोड़ा और सब्र कर लो हिंदुओं जैसे तुम्हारे बाप-दादाओं ने किया उसके बाद बंटवारे को ख़ामोशी से स्वीकार कर लिया इसलिए मंदिर टूटे या तुम्हारा मकान या तुम्हें अपना जन्मस्थान छोड़ने ही क्यों न मजबूर होना पड़े अल्पसंख्यकों की खातिर तुम चुपचाप बलिदान देते रहो वरना, उन्हें कुरबानी लेना आता ही है जो अल्लाह को भी बहुत प्यारी है ऐसे हालातों में अपने ऊपर होने वाले हमलों को भटके हुए नौजवानों या गुंडों की कारस्तानी समझो क्योंकि, आतंकी हो या चोर या फिर हमलावर या अल्लाह हु अकबर कहकर धमाका करने वाले ध्यान रहे ये कभी मुसलमान नहीं होते पर, इनके खिलाफ बोलने वाले, जय श्री राम का नारा लगाने वाले शत-प्रतिशत हिन्दू होते जिनको माफ करना भी संविधान के खिलाफ है

ये भी न भूलना कि ऐसे किसी मौकों पर कभी कोई मानवतावादी, समाजवादी, लिबरल, फेक मीडिया तुम्हारे साथ खड़ा नहीं होगा आखिरकार, एक तो तुम हिन्दू, दूसरे बहुसंख्यक जो गुनाहे अजीम है जिसकी कोई सुनवाई या माफी संविधान में नहीं लिखी गयी तुम्हें सिर्फ और सिर्फ एकतरफा प्रेम का निबाह करना है उनसे कोई अपेक्षा करना भी कुफ्र है क्योंकि वे सिर्फ अधिकारों व फायदे के लिये संविधान का नाम लेते बाकी सभी कामों में कुरआन व शरीयत को मानते जिसमें देश का वजीरे आज़म भी यदि उंगली करें तो विपक्ष खड़ा हो जाता आखिर, उसने ही तो संविधान को उनके माफिक बदल-बदलकर ऐसा बना दिया कि आज ‘हिन्दू’ या ‘सवर्ण’ शब्द ही गाली बन चुका है । यदि हम इतिहास की गलतियों को भूला दे और उनका जिक्र न करें तो भी जिस तरह से वामपंथियों ने मिलकर उसका कबाड़ा कर दिया उसका खामियाजा तो भुगतना ही होगा क्योंकि, सच्चाई तो इन मक्कारों को सहन ही नहीं होती अतः जैसे ही किसी पुरातन ऐतिहासिक सन्दर्भ का उल्लेख करो ये रिरियाने / मिमियाने लगते और वर्तमान खबरों में भी तभी इनका जमीर या भीतर सोयी कुम्भकर्णी मानवता जागती जब शोषित कोई अल्पसंख्यक मतलब तो आप सब समझ ही गये होगे हो अन्यथा सवर्णों पर आक्रमण, उनके घर चोरी, उनको पलायन को मजबूर करना, उनके आस्था के केन्द्रों को तोड़ना जैसी मामूली घटनाओं पर ये संज्ञान तक नहीं लेते उस पर इनका लिखना, कहना या उनसे कोई अभियान चलाने की अपेक्षा करना ही मुर्खता है

हमें तो केवल अधिकारों का निर्वाह और सहिंष्णुता का पालन करना वो भी तब तक जब तक कि निरीह विध्वंशक, मासूम अत्याचारी, अबोध पत्थरबाज, मानवतावादी विस्फोटक को उनका हक हासिल न हो जाये और वे इस देश में संविधान की जगह शरीयत लागु न हो जाये क्योंकि, हमको थोड़े न अभिव्यक्ति की आज़ादी, धार्मिक स्वतंत्रता या समानता का अधिकार मिला है     
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© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
जुलाई ०३, २०१९

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