गुरुवार, 25 जुलाई 2019

सुर-२०१९-२०६ : #चिड़चिड़ाहट_को_समझो #वास्विकता_से_मत_दूर_भगो




दूसरों की ऐसी हर बात जो हममें चिड़चिड़ाहट पैदा करती हैं, हमें अपने आपको समझने में मदद कर सकती हैं ।
---------- 'कार्ल जी. युग'

मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से यदि इस वाक्य को समझने का प्रयास करें तो इसका बेहद गूढ़ अर्थ कि जब भी हम किसी बात पर अत्यधिक चिड़चिड़ाते है तो ज़ाहिर है कि उसके पीछे हमारे मन का ही कोई ऐसा रहस्य छिपा जिसे हम जानकर भी अनजान क्योंकि, हमने ठहरकर उसे समझने का प्रयास नहीं किया बस, झुंझलाकर उस वक़्त को टाल दिया क्या करें जीवन की आपा-धापी और दौड़-भाग में इस कदर व्यस्त कि बेवजह यदि कहीं एक क्षण भी रुकना पड़े तो नागवार गुजरता लगता कि इस पल में न जाने कितना कुछ कर लेते जबकि, हकीकत यही है कि जो हम 24 घंटों या सारे दिन में नहीं कर पाते उसे उस अल्पावधि में किस तरह से कर लेंगे मगर, ये सहज मानवीय प्रवृति कि वो अनचाहे काम को किये जाने पर ऐसे ही चिड़चिड़ाकर प्रतिक्रिया व्यक्त करता है इसे हम बेहद आसान तरीके से एक उदाहरण के द्वारा समझ सकते है

मम्मा, मेरा होमवर्क करवा दीजिये न नन्हे ‘रोहन’ ने आकर अपनी मम्मी से कहा तो मोबाइल में व्यस्त उसकी माँ ने चिड़चिड़ाते हुये कहा, तुमसे तो कुछ होता ही नहीं, क्या है दिखाओ उसके हाथ से कॉपी झपटकर उसे देखकर मुंह बनाते हुये गुस्से में बोली, पता नहीं आजकल के टीचर्स कैसा पढाते कि बच्चों से कुछ बनता ही नहीं हमारे जमाने में न तो कोई ट्यूशन थी और न ही कोई बताने वाला पर, स्कूल में ही इतनी अच्छी पढ़ाई हो जाती थी कि किसी की मदद की जरूरत ही नहीं पड़ती थी इस तरह बडबडाते हुए उन्होंने उसे जैसे-तैसे थोड़ा-बहुत काम करवाया क्योंकि, मन तो फ्रेंड के साथ हो रही चैटिंग में ही लगा था जो बेटे के कारण अधूरी रह गयी तो उस खीझ को यूँ चिड़चिड़ाकर निकाला जिसका असर उनके मासूम बेटे के मन पर भी हुआ जो अब बहुत जरूरत पड़ने पर भी मम्मी से सहायता के लिये कम ही बोलता कि उसने पाया कि जब भी वो अपनी माँ से कुछ कहता वो ऐसे ही चिड़चिड़ाकर रियेक्ट करती थी आखिर, उनका मन मोबाइल, सहेलियों से गप्पे लगाने और घुमने-फिरने में जो लगता था तो इस तरह के विध्न से वो इसी तरह झुंझला जाती थी पर, उन्होंने कभी इसे समझने को कोई कोशिश नहीं की और न ही कोई जरूरत समझी    

मगर, यदि यहीं उन्होंने थोडा रुककर अपने इस व्यवहार पर गौर किया होता या जब भी चिड़चिड़ाहट होती तो उसकी गहराई में जाने की कोशिश की होती तो निश्चित ही वे समझ जाती कि इसका एकमात्र कारण यह है कि उनका मन इस स्थिति को स्वीकार कर पाने में अक्षम जिसकी वजह उनकी वो सोच जिसके कारण वे अपने मनपसन्द काम को तरजीह देना पसंद करती व उनकी प्राथमिकताओं में उन्होंने स्वयं को प्रथम व उसके बाद अपने दोस्तों को रखा हुआ जिसमें उनके घर-परिवार का स्थान शायद, अंत में आता कि उनके लिये जीवन के मायने अपनी खुशियों के इर्द-गिर्द सिमटे थे इसमें पति व बच्चे का क्रम भी निचले पायदान पर इसलिये पहुंच गया था कि उसके पति भी वैसे नहीं थे जैसा कि उसने शादी के पहले अपेक्षा की थी ऐसे में बच्चे के होने से भी उसको वो ख़ुशी न मिली कि मन को वो कभी इन हालातों के अनुरूप परिवर्तित ही नहीं कर पाई न ही खुद को मना सकी कि जो हो गया सो हो गया अब इसी तरह से ज़िन्दगी गुजारना है बल्कि, उसे तो हर पल तलाश रहती उन लम्हों की जिनमें वो जी ले पर, ये न समझ पाई कि अंततः न तो दोस्त और न ही ये सब साधन काम आयेंगे यदि परिजनों का लगाव भी कम हो गया तो बाद में पछताना पड़ सकता लेकिन, उनके लिये तो आज ही सब कुछ था ऐसे में रोज इस तरह चिड़चिड़ाने के दृश्य उनके घर में अक्सर, देखने में आते रहते थे     
  
आज ‘रीना’ बहुत खुश थी उसने अपनी सहेलियों के साथ मिलकर फिल्म देखने और किसी रेस्टारेंट में जाकर खाने का प्रोग्राम बनाया था आखिर, सब बड़े दिनों बाद जो मिल रही थी और बड़ी मुश्किल से ऐसा अवसर आता कि सबकी छुट्टी हो और सब साथ जाने को तैयार हो मगर, अचानक मम्मी ने आकर बताया कि शाम को उसके दीदी-जीजाजी आ रहे तो घर पर बहुत-सा काम होगा इसलिये आज वो शाम का कोई कार्यक्रम न रखे क्योंकि, वे केवल अपने बच्चों को छोड़ने आ रहे उन्हें सुबह आगे की यात्रा पर निकलना ऐसे में ‘रीना’ उन्हें ये बता तो नहीं पाई कि उसका पहले से ही प्रोग्राम सेट बस, बेमन से साथ देने लगी जिसका नतीजा निकला कि दीदी-जीजाजी के आने के बाद भी वो नॉर्मल न हो पाई और आखिरकार, चिड़चिड़ करते ही वो समय गुजरा जिसका वो आनंद नहीं ले पाई दूसरों को तो ये पता नहीं तो वे भी समझ ना पाए तो उसका नकारात्मक प्रभाव उन सबके मन पर पड़ा और दीदी के साथ आई उसकी ननद जो अपने देवर का उससे रिश्ता कराना चाहती थी उसके इस रूप को देखकर पीछे हट गयी जबकि, ‘रीना’ चाहती तो इन हालातों को सम्भाल सकती थी मगर, ख्यालों में तो सहेलियों का मस्ती करना, खिलखिलाना और एन्जॉय करना ही घूम रहा था तो मन किसी की भी बातों में न लग सका यदि वो उसे वर्तमान से जोड़ पाती तो सब न सिर्फ खुश होते बल्कि, उसे भी राहत की अनुभूति होती       

इसी तरह हम सब भी कभी-न-कभी किन्हीं अवसरों पर चिड़चिड़ा जाते तो जब भी ऐसा हो खुद को तुरंत, प्रतिक्रिया देने से रोक ले और इसके पीछे की वजह जानने की कोशिश करें अवश्य समझ आ जायेगा कि ऐसा क्यों हो रहा तो बस, तुरंत ही उसे मनोस्थिति को बदलें और जो सामने उसमें अपने आपको ढाल ले अन्यथा, अंजाम चिड़चिड़ाहट या अलगाव ही होगा क्योंकि, क्रिया की प्रतिक्रिया उसी तरह होती है
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© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
जुलाई २५, २०१९

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