मंगलवार, 9 जुलाई 2019

सुर २०१९ १९० #सुप्रीम_कोर्ट_भी_जब_मज़हब_देखे #तब_ इंसाफ_की_उम्मीद_किससे_करें




सुप्रीम कोर्ट के लगातार के फैसलों खासकर हिन्दू धर्म व सभ्यता से जुड़े मसलों पर जबकि, उससे भी अधिक महत्वपूर्ण प्रकरण पेंडिंग पड़े हो उसकी विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह लग ही गया था जिसे अपने ताजा-तरीन निर्णय से उसने सही साबित कर दिया कि जैसा आप समझते हो सच वही है इनका लक्ष्य किसी भी तरह केवल हिंदुओं की संस्कृति को नष्ट-भ्रष्ट करना है जिसके लिये ये सारे जरूरी केसेज को ताक पर रखकर भी काम करती फिर इससे भी मतलब नहीं कि उन मामलों को कोर्ट में लाने वाला कौन है क्योंकि, सब कुछ एक तयशुदा या प्रायोजित रणनीति के तहत किया जाता है जिसमें कब, किसे, किस मुद्दे पर याचिका लगाना या किस रवायत को कानूनन खत्म करना जिससे कि कोई उंगली न उठा सके और फिर भी किसी ने आवाज़ उठाई तो संविधान की किसी न किसी धारा या अधिकार का हवाला देकर उसे चुप करा देना आखिर, कोई उससे बड़ा तो है नहीं

इस तरह से उन्होंने हिन्दू धर्म से जुड़े अनेक केसेज को हाथ में लिया और इस तरह से उस पर अपना फैसला सुनाया कि उसके खिलाफ जाने की किसी की हिम्मत न हुई उस पर हिंदुओं की लापरवाही और खामोशी से हर स्थिति को सहन करने व हर आदर्श को मानने की उसकी सहज-सरल आदत ने उसके उत्साह को हमेशा ही बढ़ाया तो उसने भी धीरे-धीरे उसके पैरों के नीचे की जमीन खींचना शुरू कर दिया कि वैसे नहीं तो ऐसे ही सही वो मुंह के बल गिरेगा  वैसे भी उच्चतम न्यायालय के ऊपर तो कोई नहीं तो फिर सुनवाई के लिए वो बेचारा कहाँ जायेगा उसके तो खुद के भगवान श्रीराम का केस बरसों से लंबित पड़ा मगर, मजाल है जो उन्होंने ही कोई आपत्ति उठाई हो या भक्तों ने ही इतना हल्ला मचाया हो कि त्वरित निर्णय लेना पड़े तो वे भी सोचते कि जब उनको ही फिकर नहीं फिर हम क्यों परवाह करें जबकि, हमारा तो उद्देश्य ही हिन्दू धर्म को जड़ से मिटाना जिसके लिए कानून से बेहतर कोई दूसरा रास्ता नहीं क्योंकि, इस पर शक करना या सवाल उठाना मतलब संविधान को ही कटघरे में खड़ा करना और हिन्दू धर्म उससे बड़ा थोड़े न है

मगर, यही बात अगर इस्लाम से जुड़ी हो तो सुप्रीम कोर्ट का लहजा ही नहीं कानून की इबारत तक बदल जाती आखिर, उनका पर्सनल लॉ जो है उनके पास तो फिर ये सुप्रीम कोर्ट कौन होती उनके मामले में बोलने वाली उसे तो केवल हिन्दू धर्म पर अपनी नजर रखना और जहां तक संविधान की बात तो कुरान के आगे उसकी भी कोई हैसियत नहीं आखिर, वो आसमानी जो है किसी इंसान ने थोड़े न लिखा उसे हां, बात अगर, अधिकार मांगने की हो तब संविधान का हवाला देने में कोई गुरेज नहीं वही तो है जो धार्मिक स्वतंत्रता, समानता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और आरक्षण का लाभ देता तो ऐसे किसी मौके पर उसका नाम लेकर अपना हक लेना हमें खूब आता पर, यदि उसे हमारे मज़हब के बीच लाये तो फिर हम सब भूल जायेंगे ये एक अघोषित सा पृथक इस्लामिक कानून इस देश में चलता जिसकी वजह से यदि गलती से कोई मुआमला वहां पहुंच भी जाये तो हिंदुओं की इस चालाकी को कोर्ट कतई माफ नहीं करती और बड़ी अदब के साथ उनको उनकी औकात बताते हुए इस्लाम की ताकत का अहसास करा ही देती है

कुछ ऐसा ही किया उसने इस केस में जिसमें हिंदू महासभा की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में एक अर्जी दाखिल की गई जिसमें मुस्लिम महिलाओं को इबादत करने के लिए मस्जिदों में प्रवेश संबंधी आदेश देने की मांग की गई थी परंतु, सोमवार 8 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने यह याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी कि, ‘यह याचिका सस्ती लोकप्रियतापाने के उद्देश्य से दाखिल की गई है । सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि कोर्ट के सामने आने से पहले ही यह बात मीडिया में आ गई थी ऐसे में हमें शक है कि यह याचिका सस्ता प्रचार पाने के लिए दाखिल की गई है । यह सस्ते प्रचार का हथकंडा है अगर, कोई मुस्लिम महिला इसे चुनौती दे तब देखा जायेगाइसके पूर्व केरल हाईकोर्ट में भी ऐसी याचिका दाखिल की गई थी, वहां से यह याचिका खारिज हुई थी जिसके बाद ही याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था पर, मज़हब देखकर फैसला करने वाले किस तरह से इस मामले पर कोई निर्णय देते उन्हें तो सबरीमाला मंदिर प्रकरण में एक मुसलमान द्वारा याचिका लगाने से कोई दिक्कत नहीं न ही किसी तरह के प्रचार या राजनीति या सत्ता से जुड़ा कोई मसला लगता क्योंकि, ये हिन्दू धर्म से जो जुड़ा था पर, जैसे ही धर्म बदलता तुरंत कुतर्क गढ़ लिए जाते है अब मगर लोग जागरूक हो रहे देश की जनता भी अब वो पहले वाली भोली-भाली या सुप्रीम कोर्ट को धर्म से बड़ा मानने वाली नहीं है उसे भी समझ आ गया कि किस तरह चालाकी से उनको कभी संविधान तो कभी कानून और कभी धर्म निरपेक्षता या अखण्डता के नाम पर ठगा गया जिसका निर्वाह केवल उसके द्वारा ही किया जाता अगले को तो अपनी मनमानी करने की पूर्णतया इजाजत उनके लिये उनके पास अपना पर्सनल कानून और संविधान बोले तो कुरान जो है ।

सिर्फ इस एक मामले से सुप्रीम कोर्ट की वामपंथी मानसिकता जानी जा सकती है जो विशेष तौर से हिंदुओं के खिलाफ है भले कोई इस पर कितने भी कुतर्क गढ़े मगर, सत्य हर हाल में कायम रहता है हुआ यूं कि, मेघालय हाईकोर्ट के जस्टिस एस.आर. सेन ने दिसंबर 2018 के एक फ़ैसले में कहा था कि बंटवारे के बाद भारत को हिंदू राष्ट्र घोषित किया जाना चाहिए था  जिस पर सुप्रीम कोर्ट को इतनी मिर्ची लगी कि एकदम भड़क ही गयी जबकि, उन्होंने वर्तमान नहीं अतीत के हालातों पर अपनी बात रखी जो कतई गलत नहीं थी क्योंकि, जब 1947 में बंटवारा धर्म के आधार पर हुआ था तब क्यों केवल मुट्ठी भर लोगों को ये स्वतंत्रता दी गयी कि वो अपने मज़हब के अनुसार अपने मुल्क को इस्लामिक राष्ट्र कह सकते लेकिन, यहां करोड़ों लोगों को ये हक हासिल नहीं था कि वो भी ये कह सके कि हम संख्या में अधिक तो हमारा धर्म ही प्रधान होगा उन्होंने न केवल पाकिस्तान को मज़हबी बनाया बल्कि, अल्पसंख्यकों व हिंदुओं पर इतने अत्याचार किये व कर रहे कि जहां भारत में इनकी जनसंख्या दिन-दूनी, रात चौगुनी वृद्धि कर रही वहीं दूसरी तरफ उसकी रफ्तार कछुए से भी धीमी पर, यू.एन.ओ. को वो सब नहीं दिखता उसे तो भारत पर ही रिपोर्टिंग करनी, सुप्रीम कोर्ट को भी हिंदुओं से ही शिकायत है ऐसे में जैसे ही उन्होंने हाई कोर्ट की ये टिप्पणी सुनी तो इसको हटाने के लिये सोना खान व अन्य की याचिका पर सुनवाई करते हुए इसी सी.जे.आई. रंजन गोगोई की बेंच ने हाईकोर्ट से जवाब मांगा  उस वक़्त ये नहीं कहा कि पक्षकार को क्या आपत्ति या उसका इससे क्या ताल्लुक या वो सस्ते प्रचार के लिये तो ये सब नहीं कर रहा है क्योंकि, जिनके एजेंडे, टारगेट व मिशन सब पूर्व निर्धारित वे अर्जुन की तरह हिन्दू धर्म पर सटीक निशाना लगाते और लगाते रहेंगे क्योंकि, अधिकांश हिंदुओं को पता ही नहीं कि उनकी नाक के नीचे क्या-क्या गुल खिलाये जा चुके वो बेचारा तो अपनी रोजी-रोटी व परिवार की चिंताओं में व्यस्त है क्योंकि, उसे न तो आरक्षण का लाभ मिलना, न ही अन्य सरकारी योजनाओं से मुफ्त का पैसा और न ही विदेशों या अरब से फंड आना तो किस तरह वो बेफिक्र होकर अपने देश या धर्म के बारे में सोचे उसके लिये उसकी जिम्मेदारियां ही सर्वोपरि उसका परिवार ही प्रथम है बाकी फुरसतिया लोग मजे से चौसड बिछाए दांव लगा रहे उसे तो खबर तब होगी जब उसका राष्ट्र ही दांव पर लग जायेगा तब तक वो खुद में व्यस्त है ।

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© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
जुलाई ०९, २०१९

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