शुक्रवार, 12 जुलाई 2019

सुर-२०१९-१९३ : #आया_चौमासा_देव_चले_सोने #अपनाये_नियम_तो_रोगी_न_होंगे



आषाढ़ माह की एकादशी आते ही जगतपालक विष्णु जी अगले चार महीनों के लिये क्षीरसागर में पृथ्वी का समस्त भार ढोते शेषनाग की शैया पर अधमुंदे नेत्रों से योगनिद्रा में भले मग्न हो जाते पर, अपने भक्तों व संसार के क्रियाकलापों से किंचित भी अनभिज्ञ नहीं रहते है । वे तो केवल वर्षा ऋतु के आगमन से भाव-विभोर हो जाते तो इस साधना काल का सदुपयोग अपने ईष्ट देव व जगत के चिंतन व स्मरण में करते जिससे कि यह जीवनदायी समय जिसमें समस्त कुदरत भी नूतन सृजन में लीन रहती और वसुंधरा की कोख से नव अंकुरण होता जिससे सारी धरती नई-नवेली होकर हरियाली चादर ओढ़ लेती जिसे देखकर कलाकार मन नव कल्पना में खो जाता तो सात्विक जन तपस्यारत हो जाते है ।

बारिश के ये चार महीने बेहद सयंम-नियम व ईश भक्ति में लीन होकर व्यतीत करना चाहिये क्योंकि, इन दिनों इम्युनिटी कम व आत्मबल कमजोर होने से रोगी होने की संभावनाएं बहुत अधिक बढ़ जाती है इसलिये पूर्वजों ने अपने अनुभव से चौमासे के लिये विशेष दिनचर्या व आहार-विहार का ऐसा पैकेज तैयार किया जिसे अपनाकर हम तन-मन-वाणी तीनों की शुद्धता बरकरार रखकर निरोगी रहते हुये इस समय चक्र को आसानी से पार कर सकते है । अपनी व्यस्तता व आधुनिक जीवन शैली के अभ्यस्त होने के चलते हमने अपने अलग-अलग रूटीन बना लिये और बड़ी चालाकी से उन सभी पुरातन सूत्रों को ये कहकर खारिज कर दिया कि अब वे बेमानी हो गये उनकी कोई उपयोगिता न रही इस तरह खुद तो बदले दूसरों को भी अपने रंग में रंग लिया कि यार, उस जमाने में कोई सुविधा नहीं थी तो वे उस तरह से जीने को मजबूर थे पर, हमारे पास तो सभी तरह के सुख के साधन फिर हम क्यों अपनी लाइफ स्टाइल को उनके अनुसार परिवर्तित कर काश, वही बदला होता जो समय की मांग थी न कि अपनी सभ्यता-संस्कृति को ही भुलाकर पश्चिमी चोला पहना होता यही वजह कि दूसरे देश तो अपनी सांस्कृतिक विरासत के पोषक बने रहे और हम उसको नष्ट करने वाले विध्वंशक बन चुके है ।

आज हम जरूर ऊपर से रंगे-पुते चमकीले चेहरे व मॉडर्न कपड़े पहनकर इतराते नजर आते मगर, भीतर से हमारी देह में अनगिनत बीमारियों के रोगाणु प्रवेश कर उसे खोखला बना रहे उसके बाद भी हम ये न समझ रहे कि अब तो वापस जड़ों की तरफ लौट चले बल्कि, हमारा इरादा तो अपनी पहचान को ही पूरी तरह से मिटा देने का है । हममे से बहुत कम जानते कि आज देवशयनी एकादशी के मायने क्या है और उसके बाद के चार महीने अपने काया परिवर्तन के लिये किस तरह संजीवनी सम होते जिसके बारे में पुरखों ने तो ग्रन्थ लिख दिये लेकिन, जब तक उन पर विदेशी टेस्टेड ओके न लिख जाये हम उसकी तारीफ नहीं कर सकते इसलिए पाश्चात्य देशों में हमारे ग्रंथ-पुराणों पर शोध किया जा रहा हवन अग्निहोत्र के जरिये ऊर्जा जागरण तो योग व मंत्र-जप के द्वारा अपनी देह के भीतर छिपे आध्यात्मिक रहस्यों को समझने का प्रयास किया जा रहा उन प्रश्नों के उत्तर खोजे जा रहे जिसे वैज्ञानिक भी विज्ञान में नहीं ढूंढ पा रहे है ।

अचरज होता जब बड़े लम्बे समय की रिसर्च व पड़ताल के बाद विदेशी कोई नया निष्कर्ष निकालते और हम पाते कि हमारे ऋषि-मुनि तो प्रकृति की प्रयोगशाला में बैठकर इसे पहले ही खोजकर इसके बारे में लिख चुके बस, हमें ही खबर नहीं है ।

यकीन न हो तो इस एक जीवन मन्त्र को पढ़े...

चैते गुड़ बैसाखे तेल, जेठे पन्थ असाढ़े बेल।
सावन साग न भादों दही, क्वार करेला न कातिक मही।।

अगहन जीरा पूसे धना, माघे मिश्री फागुन चना।
ई बारह जो देय बचाय, वहि घर बैद कबौं न जाय।।

भावार्थ- चैत में गुड़, बैसाख में तेल, जेठ में यात्रा, आषाढ़ में बेल, सावन में साग, भादों में दही, क्वाँर में करेला, कार्तिक में मट्ठा, अगहन में जीरा, पूस में धनिया, माघ में मिश्री और फागुन में चना, ये वस्तुएँ स्वास्थ्य के लिए कष्टकारक होती हैं। जिस घर में इनसे बचा जाता है, उस घर में वैद्य कभी नहीं आता क्योंकि लोग स्वस्थ बने रहते हैं।

उनके लिए जिनको ये समझना मुश्किल जो हिंदी शब्दों व महीनों के नाम नहीं जानते तो अर्थ भी लिख दिया यदि हम इन छोटी-छोटी बातों या कहावतों को ही अपना लेते तो आज शतायु, निरोगी व ऊर्जा से भरपूर बने रहते पर, हमें तो स्वदेशी नहीं विदेशी कहलाना फिर जड़ो व जमीन से जुड़ाव जिसे डाउन टू अर्थ कहकर हम खुद को देशी बताने का प्रयास करते महज़ धोखा है । आज से जो चार महीने शुरू हो रहे उनमें व्रत करना गर, सम्भव नहीं तो कोई बात नहीं लेकिन, किसी संकल्प को तो लिया ही जा सकता जिसे निभाना भी मुश्किल न हो और भोजन में जो इस मौसम के अनुकूल नहीं उसे त्यागा जा सकता यदि समझ में न आये क्या छोड़ना तो इस सूत्र की सलाह मानी जा सकती है ।

देवशयनी एकादशी की अनंत शुभकामनाओं सहित... 💐💐💐 !!!
_____________________________________________________
© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
जुलाई १२, २०१९

कोई टिप्पणी नहीं: